यु॒वं प्र॒त्नस्य॑ साधथो म॒हो यद्दैवी॑ स्व॒स्तिः परि॑ णः स्यातम्। गो॒पाजि॑ह्वस्य त॒स्थुषो॒ विरू॑पा॒ विश्वे॑ पश्यन्ति मा॒यिनः॑ कृ॒तानि॑॥
yuvam pratnasya sādhatho maho yad daivī svastiḥ pari ṇaḥ syātam | gopājihvasya tasthuṣo virūpā viśve paśyanti māyinaḥ kṛtāni ||
यु॒वम्। प्र॒त्नस्य॑। सा॒ध॒थः॒। म॒हः। यत्। दैवी॑। स्व॒स्तिः। परि॑। नः॒। स्या॒त॒म्। गो॒पाजि॑ह्वस्य। त॒स्थुषः॑। विऽरू॑पा। विश्वे॑। प॒श्य॒न्ति॒। मा॒यिनः॑। कृ॒तानि॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब परस्पर भाव से राज प्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ परस्परेण राजप्रजाविषयमाह।
हे राजप्रजाजनौ युवं यथा विश्वे मायिनस्तस्थुषः कृतानि विरूपा पश्यन्ति तथा प्रत्नस्य गोपाजिह्वस्य यन्महो दैवी स्वस्तिरस्ति ता नः परिसाधथः सर्वेषां सुखकरौ स्यातम् ॥९॥
MATA SAVITA JOSHI
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