Go To Mantra

त्रीणि॑ राजाना वि॒दथे॑ पु॒रूणि॒ परि॒ विश्वा॑नि भूषथः॒ सदां॑सि। अप॑श्य॒मत्र॒ मन॑सा जग॒न्वान्व्र॒ते ग॑न्ध॒र्वाँ अपि॑ वा॒युके॑शान्॥

English Transliteration

trīṇi rājānā vidathe purūṇi pari viśvāni bhūṣathaḥ sadāṁsi | apaśyam atra manasā jaganvān vrate gandharvām̐ api vāyukeśān ||

Mantra Audio
Pad Path

त्रीणि॑। रा॒जा॒ना॒। वि॒दथे॑। पु॒रूणि॑। परि॑। विश्वा॑नि। भू॒ष॒थः॒। सदां॑सि। अप॑श्यम्। अत्र॑। मन॑सा। ज॒ग॒न्वान्। व्र॒ते। ग॒न्ध॒र्वान्। अपि॑। वा॒युऽके॑शान्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:38» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सभा के कार्य्य का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

Word-Meaning: - हे (राजाना) राजा और प्रजाजनो ! मैं इस संसार में वर्त्तमान जिन (व्रते) सत्यभाषणादि व्यवहार में (गन्धर्वान्) उत्तम प्रकार शिक्षित वाणी वा पृथिवी को धारण करने और (वायुकेशान्) वायु के सदृश प्रकाशवाले तथा अन्य भी शिष्ट अर्थात् उत्तम पुरुषों को (मनसा) विज्ञान से (जगन्वान्) प्राप्त हुआ (अपश्यम्) देखता हूँ उन लोगों से (त्रीणि) तीन (सदांसि) सभायें नियत कराके (विदथे) विज्ञान को प्राप्त करानेवाले व्यवहार में (पुरूणि) बहुत (विश्वानि) सम्पूर्ण व्यवहारों को (परि) सब प्रकार (भूषथः) शोभित करते हो, इससे सम्पूर्ण कार्य्यों के सिद्ध करनेवाले होते हो ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! आप लोग उत्तम गुण कर्म और स्वभाववाले यथार्थवक्ता विद्वान् पुरुषों की राजसभा विद्यासभा और धर्मसभा नियत कर और सम्पूर्ण राज्यसम्बन्धी कर्मों को यथायोग्य सिद्ध कर सकल प्रजा को निरन्तर सुख दीजिये ॥६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभाकार्य्यमुपदिश्यते।

Anvay:

हे राजानाऽहमत्र स्थितान्यान् व्रते गन्धर्वान्वायुकेशानन्यानपि शिष्टान् मनसा जगन्वान् सन्नपश्यं तैस्त्रीणि सदांसि निर्माय विदथे पुरूणि विश्वानि यतः परिभूषथस्तस्मात्सकलकार्य्यसिद्धिकरौ भवथः ॥६॥

Word-Meaning: - (त्रीणि) (राजाना) विद्यादिशुभगुणैः प्रकाशमानौ राजप्रजाजनौ (विदथे) विज्ञानप्रापके व्यवहारे (पुरूणि) बहूनि (परि) सर्वतः (विश्वानि) अखिलानि (भूषथः) अलंकुरुथः (सदांसि) सभाः (अपश्यम्) पश्यामि (अत्र) अस्मिन् राजव्यवहारे (मनसा) विज्ञानेन (जगन्वान्) गन्ता (व्रते) सत्यभाषणादिव्यवहारे (गन्धर्वान्) ये गां सुशिक्षितां वाचं पृथिवीं वा धरन्ति तान् (अपि) (वायुकेशान्) वायुरिव केशाः प्रकाशा येषां तान् ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या युष्माभिरुत्तमगुणकर्मस्वभावानामाप्तानां विदुषां राजविद्याधर्मसभाः संस्थाप्य सर्वाणि राजकार्याणि यथावत्संसाध्य सर्वाः प्रजाः सततं सुखयत ॥६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! तुम्ही उत्तम गुण, कर्म स्वभाव असणाऱ्या आप्त विद्वान पुरुषांची राजसभा, विद्यासभा, धर्मसभा नेमून संपूर्ण राज्यासंबंधी कार्यांना यथायोग्य सिद्ध करून संपूर्ण प्रजेला निरंतर सुख द्यावे. ॥ ६ ॥