इ॒नोत पृ॑च्छ॒ जनि॑मा कवी॒नां म॑नो॒धृतः॑ सु॒कृत॑स्तक्षत॒ द्याम्। इ॒मा उ॑ ते प्र॒ण्यो॒३॒॑ वर्ध॑माना॒ मनो॑वाता॒ अध॒ नु धर्म॑णि ग्मन्॥
inota pṛccha janimā kavīnām manodhṛtaḥ sukṛtas takṣata dyām | imā u te praṇyo vardhamānā manovātā adha nu dharmaṇi gman ||
इ॒ना। उ॒त। पृ॒च्छ॒। जनि॑म। क॒वी॒नाम्। म॒नः॒ऽधृतः॑। सु॒ऽकृतः॑। त॒क्ष॒त॒। द्याम्। इ॒माः। ऊँ॒ इति॑। ते॒। प्र॒ऽन्यः॑। वर्ध॑मानाः। मनः॑ऽवाताः। अध॑। नु। धर्म॑णि। ग्म॒न्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्या या कवीनां मनोधृतः सुकृत उ इमा प्रण्यो वर्धमाना मनोवाता धर्मणि नु ग्मन् अध या द्यां प्राप्नुयुर्ये ते जनिमा ग्मन् ता उत तानिना त्वं पृच्छ। यूयमविद्यां तक्षत ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A