वार्त्र॑हत्याय॒ शव॑से पृतना॒षाह्या॑य च। इन्द्र॒ त्वा व॑र्तयामसि॥
vārtrahatyāya śavase pṛtanāṣāhyāya ca | indra tvā vartayāmasi ||
वार्त्र॑ऽहत्याय। शव॑से। पृ॒त॒ना॒ऽसह्या॑य। च॒। इन्द्र॑। त्वा॒। व॒र्त्त॒या॒म॒सि॒॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब ग्यारह ऋचावाले सैंतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ राजगुणानाह।
हे इन्द्र ! यथा वयं वार्त्रहत्याय सूर्यमिव पृतनाषाह्याय शवसे त्वा वर्त्तयामसि तथा त्वं चास्मानेतस्मै वर्त्तय ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या प्रकारे राजा व प्रजेच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.