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म॒हाँ उ॒ग्रो वा॑वृधे वी॒र्या॑य स॒माच॑क्रे वृष॒भः काव्ये॑न। इन्द्रो॒ भगो॑ वाज॒दा अ॑स्य॒ गावः॒ प्र जा॑यन्ते॒ दक्षि॑णा अस्य पू॒र्वीः॥

English Transliteration

mahām̐ ugro vāvṛdhe vīryāya samācakre vṛṣabhaḥ kāvyena | indro bhago vājadā asya gāvaḥ pra jāyante dakṣiṇā asya pūrvīḥ ||

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Pad Path

म॒हान्। उ॒ग्रः। व॒वृ॒धे॒। वी॒र्या॑य। स॒म्ऽआच॑क्रे। वृ॒ष॒भः। काव्ये॑न। इन्द्रः॑। भगः॑। वा॒ज॒ऽदाः। अ॒स्य॒। गावः॑। प्र। जा॒य॒न्ते॒। दक्षि॑णाः। अ॒स्य॒। पू॒र्वीः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:36» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (वाजदाः) अन्न आदि का देनेवाला (भगः) सेवा करने योग्य (वृषभः) बलयुक्त (उग्रः) उत्तम भाग्योदय विशिष्ट (महान्) अति आदर करने योग्य महाशय (इन्द्रः) ऐश्वर्य्यवाला (काव्येन) बुद्धिमान् पुरुष ने बनाये हुए शास्त्र से (वीर्याय) बल के लिये (वावृधे) बढ़ता और (समाचक्रे) संयुक्त करता है (अस्य) इस पुरुष की (गावः) गौवें और (अस्य) इसकी (दक्षिणाः) दान कर्म (पूर्वीः) पूर्ण रूप से सिद्ध (प्र, जायन्ते) होते हैं ॥५॥
Connotation: - जो विद्यावान् पुरुष श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ सुपात्र कुपात्रों की उत्तम प्रकार परीक्षा करके सत्कार और अपकार यथायोग्य करता है, उसी पुरुष के सम्पूर्ण पशु और आनन्द उपकारयुक्त होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो वाजदा भगो वृषभ उग्रो महानिन्द्रः काव्येन वीर्याय वावृधे समाचक्रेऽस्य गावोऽस्य दक्षिणाः पूर्वीः प्रजायन्ते ॥५॥

Word-Meaning: - (महान्) पूज्यतमो महाशयः (उग्रः) तीव्रभाग्योदयः (वावृधे) वर्धते (वीर्याय) बलाय (समाचक्रे) समाकरोति (वृषभः) बलिष्ठः (काव्येन) कविना मेधाविना निर्मितेन शास्त्रेण (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (भगः) भजनीयः (वाजदाः) यो वाजमन्नादिकं ददाति सः (अस्य) (गावः) धेनवः (प्र) (जायन्ते) उत्पद्यन्ते (दक्षिणाः) दानानि (अस्य) (पूर्वीः) पूर्णाः ॥५॥
Connotation: - यो विद्वान् सुपात्रकुपात्रौ सुपरीक्ष्य सत्काराऽपकारौ करोति तस्यैव सर्वे पशव आनन्दाश्चोपकृता भवन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो विद्वान पुरुष सुपात्र व कुपात्राची परीक्षा करून (उपकार) सत्कार व अपकार करतो त्याचे (गायी वगैरे) सर्व पशू आनंददायक व उपकारक असतात. ॥ ५ ॥