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म॒हाँ अम॑त्रो वृ॒जने॑ विर॒प्श्यु१॒॑ग्रं शवः॑ पत्यते धृ॒ष्ण्वोजः॑। नाह॑ विव्याच पृथि॒वी च॒नैनं॒ यत्सोमा॑सो॒ हर्य॑श्व॒मम॑न्दन्॥

English Transliteration

mahām̐ amatro vṛjane virapśy ugraṁ śavaḥ patyate dhṛṣṇv ojaḥ | nāha vivyāca pṛthivī canainaṁ yat somāso haryaśvam amandan ||

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Pad Path

म॒हान्। अम॑त्रः। वृ॒जने॑। वि॒ऽर॒प्शी। उ॒ग्रम्। शवः॑। प॒त्य॒ते॒। धृ॒ष्णु। ओजः॑। न। अह॑। वि॒व्या॒च॒। पृ॒थि॒वी। च॒न। एन॑म्। यत्। सोमा॑सः। हरि॑ऽअश्वम्। अम॑न्दन्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:36» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (अमत्रः) ज्ञानी (विरप्शी) अनेक प्रकार के प्रसिद्ध उपदेशों से पूर्ण (महान्) श्रेष्ठ (वृजने) बल में (उग्रम्) कठिन दृढ़ (शवः) बल और (धृष्णु) प्रचण्ड (ओजः) पराक्रम (पत्यते) प्राप्त होता है (एनम्) इसको कोई पुरुष (चन) कुछ (न) नहीं (विव्याच) छलता है (अह) हा ! इसको (पृथिवी) भूमि प्राप्त होवै (यत्) जिस (हर्यश्वम्) ले चलनेवाले घोड़ोंयुक्त जन को (सोमासः) ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष (अमन्दन्) पसन्द करैं वह उनको निरन्तर प्रसन्न करै ॥४॥
Connotation: - मनुष्यों में वही पुरुष श्रेष्ठ होता है, जो शरीर आत्मा सेना मित्र बल आरोग्य धर्म विद्या की वृद्धि करता है, वह छल आदि दोषों का त्याग करके सबका उपकार करता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

योऽमत्रो विरप्शी महान् वृजने उग्रं शवो धृष्ण्वोजः पत्यते। एनं कश्चन न विव्याचाह एनं पृथिवी प्राप्नुयात् यद्यं हर्यश्वं सोमासोऽमन्दन्त्स तान् सततं हर्षयेत् ॥४॥

Word-Meaning: - (महान्) (अमत्रः) ज्ञानवान् (वृजने) बले (विरप्शी) विविधा विरप्शा प्रसिद्धा उपदेशा विद्यन्ते यस्य सः (उग्रम्) कठिनं दृढम् (शवः) बलम् (पत्यते) प्राप्नोति (धृष्णु) प्रगल्भम् (ओजः) पराक्रमः (न) निषेधे (अह) विनिग्रहे (विव्याच) छलयति (पृथिवी) भूमिः (चन) (एनम्) (यत्) ये (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः (हर्यश्वम्) हरयो हरणशीला अश्वा यस्य तम् (अमन्दन्) आनन्देयुः ॥४॥
Connotation: - मनुष्येषु स एव महान् भवति यः शरीरात्मसेनामित्रबलाऽरोग्यधर्मविद्या वर्धयति स छलादिदोषांस्त्यक्त्वा सर्वोपकारं करोति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांमध्ये तोच पुरुष महान असतो जो शरीर, आत्मा, सेना, मित्र, बल, आरोग्य, धर्म व विद्येची वृद्धी करतो. तो छळ इत्यादी दोषांचा त्याग करून सर्वांवर उपकार करतो. ॥ ४ ॥