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शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥

English Transliteration

śunaṁ huvema maghavānam indram asmin bhare nṛtamaṁ vājasātau | śṛṇvantam ugram ūtaye samatsu ghnantaṁ vṛtrāṇi saṁjitaṁ dhanānām ||

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Pad Path

शु॒नम्। हु॒वे॒म॒। म॒घवा॑नम्। इन्द्र॑म्। अ॒स्मिन्। भरे॑। नृऽत॑मम्। वाज॑ऽसातौ। शृ॒ण्वन्त॑म्। उ॒ग्रम्। ऊ॒तये॑। स॒मत्ऽसु॑। घ्नन्त॑म्। वृ॒त्राणि॑। स॒म्ऽजित॑म्। धना॑नाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:36» Mantra:11 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (अस्मिन्) इस (वाजसातौ) अन्न आदि का विभाग जिसमें ऐसे (भरे) पालन में (शुनम्) सब प्राणियों के सुखकारक (मघवानम्) बहुत विद्या और धनयुक्त (नृतमम्) अतिशय पुरुषों में अग्रणी (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (शृण्वन्तम्) सकल शास्त्र सुननेवाले (उग्रम्) तेजधारी (समत्सु) संग्रामों में (वृत्राणि) मेघों के अवयवों को जैसे सूर्य वैसे शत्रुओं को (सञ्जितम्) उत्तम प्रकार जीतनेवाले (इन्द्रम्) दुष्टजनों के नाशकर्त्ता राजा को (हुवेम) स्वीकार करैं वैसे इसका आप लोग भी स्वीकार करैं ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सम्पूर्ण विद्याविशिष्ट शुभगुणी सबको सुख देनेवाला प्रजाओं के पालन में तत्पर शत्रुओं के नाश करने में उद्यत धर्मी और पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष हो, उसके लिये राज्य में अधिकार दे और उसकी आज्ञा में वर्त्तमान होकर सबलोग अत्यन्त सुख भोग करो ॥११॥ इस सूक्त में इन्द्र विद्वान् राजा और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छत्तीसवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा वयमस्मिन् वाजसातौ भरे शुनं मघवानं नृतममूतये शृण्वन्तमुग्रं समत्सु वृत्राणि घ्नन्तं धनानां सञ्जितमिन्द्रं हुवेम तथैतं यूयमपि स्वीकुरुत ॥११॥

Word-Meaning: - (शुनम्) सर्वेषां सुखकरम् (हुवेम) स्वीकुर्याम (मघवानम्) बहुविद्याधनम् (इन्द्रम्) दुष्टविदारकं राजानम् (अस्मिन्) भरे पोषणे (नृतमम्) अतिशयेन नायकम् (वाजसातौ) वाजानामन्नादीनां विभागो यस्मिंस्तस्मिन् (शृण्वन्तम्) सकलशास्त्रश्रोतारम् (उग्रम्) तेजस्विनम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (घ्नन्तम्) (वृत्राणि) मेघावयवान्सूर्य इव शत्रून् (सञ्जितम्) सम्यग् जयशीलम् (धनानाम्) ॥११॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽखिलविद्याशुभगुणः सर्वेषां सुखप्रदः प्रजापालनतत्परः शत्रुविनाशने रतो धार्मिको नरोत्तमो भवेत्तं राज्येऽधिकृत्य तच्छासने वर्त्तित्वा सर्वेऽतुलं सुखं भुञ्जतामिति ॥११॥ अत्रेन्द्रविद्वद्राजप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति षट्त्रिंशत्तमं सूक्तं विंशतितमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो संपूर्ण विद्या, शुभगुणयुक्त, सर्वांना सुख देणारा, प्रजेचे पालन व शत्रूंचा नाश करण्यात तत्पर, धार्मिक व श्रेष्ठ पुरुष असेल त्यालाच राज्याचा अधिकार द्यावा व त्याच्या आज्ञेत राहून सर्व सुख भोगावे. ॥ ११ ॥