इन्द्र॒ ओष॑धीरसनो॒दहा॑नि॒ वन॒स्पतीँ॑रसनोद॒न्तरि॑क्षम्। बि॒भेद॑ ब॒लं नु॑नु॒दे विवा॒चोऽथा॑भवद्दमि॒ताभिक्र॑तूनाम्॥
indra oṣadhīr asanod ahāni vanaspatīm̐r asanod antarikṣam | bibheda valaṁ nunude vivāco thābhavad damitābhikratūnām ||
इन्द्रः॑। ओष॑धीः। अ॒स॒नो॒त्। अहा॑नि। व॒न॒स्पती॑न्। अ॒स॒नो॒त्। अ॒न्तरि॑क्षम्। बि॒भेद॑। ब॒लम्। नु॒नु॒दे। विऽवा॑चः। अथ॑। अ॒भ॒व॒त्। द॒मि॒ता। अ॒भिऽक्र॑तूनाम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर राजादि जनों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुना राजादिजनैः किं कर्त्तव्यमित्याह।
स राजेन्द्रोऽहानि नित्यमोषधीरसनोद्वनस्पतीनसनोदन्तरिक्षं बलं च बिभेद विवाचो नुनुदेऽथाभिक्रतूनां दमिताऽभवत् ॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
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