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इन्द्र॑स्य॒ कर्म॒ सुकृ॑ता पु॒रूणि॑ व्र॒तानि॑ दे॒वा न मि॑नन्ति॒ विश्वे॑। दा॒धार॒ यः पृ॑थि॒वीं द्यामु॒तेमां ज॒जान॒ सूर्य॑मु॒षसं॑ सु॒दंसाः॑॥

English Transliteration

indrasya karma sukṛtā purūṇi vratāni devā na minanti viśve | dādhāra yaḥ pṛthivīṁ dyām utemāṁ jajāna sūryam uṣasaṁ sudaṁsāḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑स्य। कर्म॑। सुऽकृ॑ता। पु॒रूणि॑। व्र॒तानि॑। दे॒वाः। न। मि॒न॒न्ति॒। विश्वे॑। दा॒धार॑। यः। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। उ॒त। इ॒माम्। ज॒जान॑। सूर्य॑म्। उ॒षस॑म्। सु॒ऽदंसाः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (सुदंसः) सुन्दर धर्म सम्बन्धी कर्मों से युक्त परमेश्वर (इमाम्) इस (पृथिवीम्) भूमि और (द्याम्) प्रकाशस्वरूप आदि लोक को तथा (सूर्यम्) सूर्य लोक को (उत) और भी (उषसम्) दिन को (जजान) उत्पन्न करता (दाधार) धारण करता वा पुष्ट करता है जिस (इन्द्रस्य) परमात्मा के (विश्वे) सम्पूर्ण (देवाः) पृथिवी आदि वा विद्वान् लोग (व्रतानि) सत्य विचारों को (सुकृता) उत्तम (पुरूणि) बहुत (कर्म) कामों को (न) नहीं (मिनन्ति) नाश करते हैं, उसकी आप और हम लोग उपासना करें ॥८॥
Connotation: - परमेश्वर के पवित्र होने से सम्पूर्ण सामर्थ्ययुक्त सबके उत्पन्न वा धारणकर्त्ता परमेश्वर से स्वरूप परिमित सामर्थ्य वा कर्म को कोई भी नाश नहीं कर सक्ता है और जो लोग इस परमेश्वर की सत्यभावना से उपासना करते हैं, वे भी पवित्र होकर सामर्थ्ययुक्त होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यः सुदंसाः परमेश्वर इमां पृथिवीं द्यां सूर्य्यमुतोषसं जजान दाधार यस्येन्द्रस्य विश्वे देवा व्रतानि सुकृता पुरूणि कर्म न मिनन्ति तमेव यूयं वयं चोपासीमहि ॥८॥

Word-Meaning: - (इन्द्रस्य) परमात्मनः (कर्म) कर्माणि (सुकृता) सुकृतानि (पुरूणि) (व्रतानि) सत्याचरणानि (देवाः) पृथिव्यादयो विद्वांसो वा (न) निषेधे (मिनन्ति) हिंसन्ति (विश्वे) सर्वे (दाधार) धरति पुष्णाति वा (यः) (पृथिवीम्) भूमिम् (द्याम्) प्रकाशत्मकलोकादिकम् (उत) अपि (इमाम्) प्रत्यक्षाम् (जजान) जनयति (सूर्य्यम्) सवितारम् (उषसम्) दिनम् (सुदंसाः) शोभनानि धर्म्याणि दंसांसि कर्माणि यस्य सः ॥८॥
Connotation: - परमेश्वरस्य पवित्रत्वात्सर्वशक्तिमतः सर्वस्य जनकस्य धातुः स्वरूपपरिमितं सामर्थ्यं कर्म वा कोऽपि हिंसितुं न शक्नोति य एतं सत्यभावेनोपासते तेपि पवित्राः सन्तः समर्था जायन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - परमेश्वर पवित्र असल्यामुळे संपूर्ण सामर्थ्ययुक्त सर्वांचा उत्पन्नकर्ता किंवा धारणकर्ता आहे, त्याच्या अमर्याद सामर्थ्याचा किंवा कर्माचा कोणी नाश करू शकत नाही. जे लोक सत्यभावनेने परमेश्वराची उपासना करतात तेही पवित्र बनून सामर्थ्ययुक्त होतात. ॥ ८ ॥