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यजा॑म॒ इन्नम॑सा वृ॒द्धमिन्द्रं॑ बृ॒हन्त॑मृ॒ष्वम॒जरं॒ युवा॑नम्। यस्य॑ प्रि॒ये म॒मतु॑र्य॒ज्ञिय॑स्य॒ न रोद॑सी महि॒मानं॑ म॒माते॑॥

English Transliteration

yajāma in namasā vṛddham indram bṛhantam ṛṣvam ajaraṁ yuvānam | yasya priye mamatur yajñiyasya na rodasī mahimānam mamāte ||

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Pad Path

यजा॑मः। इत्। नम॑सा। वृ॒द्धम्। इन्द्र॑म्। बृ॒हन्त॑म्। ऋ॒ष्वम्। अ॒जर॑म्। युवा॑नम्। यस्य॑। प्रि॒ये। म॒मतुः॑। य॒ज्ञिय॑स्य। न। रोद॑सी॒ इति॑। म॒हि॒मान॑म्। म॒माते॒ इति॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:7 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कैसे ईश्वर की उपासना करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! हम लोग (यस्य) जिस (यज्ञियस्य) पूजा अर्थात् प्रीति करने योग्य परमेश्वर के (महिमानम्) महत्तत्व को (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी (न) नहीं (ममाते) नाप सकते और (प्रिये) प्रीति करानेवाले इस लोक और परलोक के सुखों ने नहीं (ममतुः) नापे हैं (इत्) उसी (युवानम्) सम्पूर्ण संसार के संयोग और विभाग के करनेवाले (अजरम्) बुढ़ापे से रहित (ऋष्वम्) श्रेष्ठ (बृहन्तम्) बढ़े (वृद्धम्) आयु को भोगे हुए वा विद्या से श्रेष्ठ (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य्य करनेवाले परमेश्वर की (नमसा) सत्कार से (यजाम) पूजा करते हैं, उसकी तुम लोग भी पूजा करो ॥७॥
Connotation: - जिस परमेश्वर की अपेक्षा कोई पदार्थ तुल्य वा अधिक नहीं, जो सब से श्रेष्ठ व्यापक विनाशरहित और पूज्य है, उसी परमात्मा की हम लोग निरन्तर उपासना करें ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः किंभूतस्येश्वरस्योपासना कार्येत्युच्यते।

Anvay:

हे मनुष्या वयं यस्य यज्ञियस्य परमेश्वरस्य महिमानं रोदसी न ममाते प्रिये ऐहिकपारलौकिकसुखे च न ममतुस्तमिद्युवानमजरमृष्वं बृहन्तं वृद्धमिन्द्रं नमसा यजामस्तं यूयमपि पूजयत ॥७॥

Word-Meaning: - (यजामः) पूजयामः (इत्) एव (नमसा) सत्कारेण (वृद्धम्) भुक्ताऽऽयुष्कं विद्यया महान्तं वा (इन्द्रम्) परमैश्वर्यकारकम् (बृहन्तम्) (ऋष्वम्) महान्तम्। ऋष्व इति महन्ना०। निघं० ३। ३। (अजरम्) जरारहितम् (युवानम्) सर्वस्य जगतः संयोजकं विभाजकं च (यस्य) (प्रिये) कमनीये प्रीतिकारके (ममतुः) परिमीयेते (यज्ञियस्य) पूजनाऽर्हस्य (न) निषेधे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (महिमानम्) महत्त्वम् (ममाते) मिमाते परिछिन्तः। अत्र बहुलं छन्दसीत्यभ्यासेत्त्वप्रतिषेधः ॥७॥
Connotation: - यस्य परमेश्वरस्य कश्चित्पदार्थस्तुल्योऽधिको वा न विद्यते यः सर्वेषां गुरुर्व्यापकोऽविनाशी पूज्यो वर्त्तते तमेव परमात्मानं वयं सततमुपासीमहि ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या परमेश्वरापेक्षा कोणताही पदार्थ तुलना करण्यायोग्य किंवा अधिक नाही, जो सर्वात श्रेष्ठ, व्यापक, विनाशरहित व पूज्य आहे, त्याच परमेश्वराची आम्ही निरंतर उपासना करावी. ॥ ७ ॥