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त इन्न्व॑स्य॒ मधु॑मद्विविप्र॒ इन्द्र॑स्य॒ शर्धो॑ म॒रुतो॒ य आस॑न्। येभि॑र्वृ॒त्रस्ये॑षि॒तो वि॒वेदा॑म॒र्मणो॒ मन्य॑मानस्य॒ मर्म॑॥

English Transliteration

ta in nv asya madhumad vivipra indrasya śardho maruto ya āsan | yebhir vṛtrasyeṣito vivedāmarmaṇo manyamānasya marma ||

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Pad Path

ते। इत्। नु। अ॒स्य॒। मधु॑ऽमत्। वि॒वि॒प्रे॒। इन्द्र॑स्य। शर्धः॑। म॒रुतः॑। ये। आस॑न्। येभिः॑। वृ॒त्रस्य॑। इ॒षि॒तः। वि॒वेद॑। अ॒म॒र्मणः॑। मन्य॑मानस्य। मर्म॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:32» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन लोग विद्वान् होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - (ये) जो (मरुतः) पवनों के सदृश वेग और बल से युक्त पुरुष (अस्य) इस वर्त्तमान (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त पुरुष के (शर्धः) बल को (विविप्रे) फेंकते हैं (आसन्) मुख में (मधुमत्) बहुत मधुर आदि गुणों से युक्त वस्तुओं से पूर्ण पदार्थ को (इत्) ही रखते हैं जो (येभिः) जिन्हों से (इषितः) प्रेरित हुआ (वृत्रस्य) मेघ के सदृश शत्रु वा (अमर्मणः) मर्म से रहित (मर्म) प्रहार करने से नाश होनवाले स्थान को (मन्यमानस्य) जाननेवाले को (विवेद) जानें (ते) वे पूर्व कहे हुए और वह पुरुष (नु) निश्चय अपने वाञ्छित फल को प्राप्त होते हैं ॥४॥
Connotation: - जो लोग धन आदि ऐश्वर्य्य से सबके सुख की वृद्धि और दुःखों का निवारण करके सबलोगों को प्रसन्न करते हैं, उनको ही धार्मिक विद्वान् मानना चाहिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के विद्वांसो भवन्तीत्याह।

Anvay:

ये मरुतोऽस्येन्द्रस्य शर्द्धो विविप्रे आसन्मधुमदिद्विविप्रे यो येभिरिषितो वृत्रस्येवाऽमर्मणो मर्म मन्यमानस्य विवेद ते स च नु स्वाभीष्टं प्राप्नुवन्ति ॥४॥

Word-Meaning: - (ते) पूर्वोक्ताः (इत्) एव (नु) सद्यः (अस्य) वर्त्तमानस्य (मधुमत्) बहूनि मधुरादिगुणयुक्तानि वस्तूनि विद्यन्ते यस्मिँस्तत् (विविप्रे) क्षिपन्ति (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्तस्य (शर्धः) बलम् (मरुतः) वायव इव वेगबलयुक्ताः (ये) (आसन्) आस्ये (येभिः) यैः (वृत्रस्य) मेघस्येव शत्रोः (इषितः) प्रेरितः (विवेद) विजानीयात् (अमर्मणः) अविद्यमानं मर्म यस्मिंस्तस्य (मन्यमानस्य) विज्ञातुः (मर्म) यस्मिन्प्रहते म्रियते तत् ॥४॥
Connotation: - ये धनादिनैश्वर्य्येण सर्वस्य सुखं वर्धयित्वा दुःखानि निर्वाय सर्वान् प्रसादयन्ति त एव धार्मिका विद्वांसो मन्तव्याः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक धनादी ऐश्वर्याने सर्वांच्या सुखाची वृद्धी व दुःखाचे निवारण करून सर्व लोकांना प्रसन्न करतात, त्यांनाच धार्मिक विद्वान मानले पाहिजे. ॥ ४ ॥