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स॒तःस॑तः प्रति॒मानं॑ पुरो॒भूर्विश्वा॑ वेद॒ जनि॑मा॒ हन्ति॒ शुष्ण॑म्। प्र णो॑ दि॒वः प॑द॒वीर्ग॒व्युरर्च॒न्त्सखा॒ सखीँ॑रमुञ्च॒न्निर॑व॒द्यात्॥

English Transliteration

sataḥ-sataḥ pratimānam purobhūr viśvā veda janimā hanti śuṣṇam | pra ṇo divaḥ padavīr gavyur arcan sakhā sakhīm̐r amuñcan nir avadyāt ||

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Pad Path

स॒तःऽस॑तः। प्र॒ति॒ऽमान॑म्। पु॒रः॒ऽभूः। विश्वा॑। वे॒द॒। जनि॑म। हन्ति॑। शुष्ण॑म्। प्र। नः॒। दि॒वः। प॒द॒ऽवीः। ग॒व्युः। अर्च॑न्। सखा॑। सखी॑न्। अ॒मु॒ञ्च॒त्। निः। अ॒व॒द्यात्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:8 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन सुखी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो पुरुष (पुरोभूः) पहिले से चिताता (सतःसतः) विद्यमान विद्यमान के (प्रतिमानम्) परिमाण के साधक को वा (विश्वा) संपूर्ण (जनिमा) उत्पन्न हुए पदार्थों को (वेद) जानता और (शुष्णम्) शोककारक दुःख को (हन्ति) नाश करता है वह (गव्युः) अपने को विद्या चाहनेवाला (नः) हम लोगों के (दिवः) प्रकाश की (पदवीः) प्रतिष्ठाओं को (प्र) प्राप्त करे (सखीन्) मित्रों का (अर्चन्) सत्कार करता हुआ (सखा) मित्र होकर (अवद्यात्) धर्मरहित आवरण से (निः) निरन्तर (अमुञ्चत्) पृथक् करे वह अत्यन्त सुख को प्राप्त हो ॥८॥
Connotation: - वे ही मनुष्य सुखी होते हैं, जो कार्य्यकारणरूप सृष्टि को जान और संपूर्ण जनों के मित्र हो सम्पूर्ण जनों को पाप के आचरण से पृथक् करके धर्म के आचरण में प्रवृत्त करें, वे ही सत्य मित्र हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के सुखिनो भवन्तीत्याह।

Anvay:

हे मनुष्याः यः पुरोभूः सतःसतः प्रतिमानं विश्वा जनिमा वेद शुष्णं हन्ति स गव्युर्नो दिवः पदवीः प्रयच्छेत्सखीनर्चन् सखा सन्नवद्यान्निरमुञ्चत्सोऽतुलं सुखमाप्नुयात् ॥८॥

Word-Meaning: - (सतःसतः) विद्यमानस्य विद्यमानस्य (प्रतिमानम्) परिमाणसाधकम् (पुरोभूः) यः पुरस्ताद्भावयति सः (विश्वा) सर्वाणि (वेद) जानाति (जनिमा) जन्मानि (हन्ति) (शुष्णम्) शोककरं दुःखम् (प्र) (नः) अस्माकम् (दिवः) प्रकाशस्य (पदवीः) प्रतिष्ठाः (गव्युः) आत्मनो गां वाणीमिच्छुः (अर्चन्) सत्कुर्वन् (सखा) सुहृत्सन् (सखीन्) सुहृदः (अमुञ्चत्) मुच्यात् (निः) (अवद्यात्) निन्द्यादधर्म्यादाचरणात् ॥८॥
Connotation: - त एव मनुष्याः सुखिनो भवन्ति ये कार्य्याकारणरूपां सृष्टिं विदित्वा सर्वेषां सखायो भूत्वा सर्वान् पापाचरणात्पृथक्कृत्य धर्माचरणे प्रवर्त्तयेयुः। त एव सत्यसुहृदः सन्तीति ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - तीच माणसे सुखी होतात जी कार्यकारणरूपी सृष्टीला जाणून संपूर्ण लोकांचे मित्र बनतात. सर्व लोकांना पापाचरणापासून पृथक करून धर्माच्या आचरणात प्रवृत्त करतात. तेच खरे मित्र असतात. ॥ ८ ॥