स॒तःस॑तः प्रति॒मानं॑ पुरो॒भूर्विश्वा॑ वेद॒ जनि॑मा॒ हन्ति॒ शुष्ण॑म्। प्र णो॑ दि॒वः प॑द॒वीर्ग॒व्युरर्च॒न्त्सखा॒ सखीँ॑रमुञ्च॒न्निर॑व॒द्यात्॥
sataḥ-sataḥ pratimānam purobhūr viśvā veda janimā hanti śuṣṇam | pra ṇo divaḥ padavīr gavyur arcan sakhā sakhīm̐r amuñcan nir avadyāt ||
स॒तःऽस॑तः। प्र॒ति॒ऽमान॑म्। पु॒रः॒ऽभूः। विश्वा॑। वे॒द॒। जनि॑म। हन्ति॑। शुष्ण॑म्। प्र। नः॒। दि॒वः। प॒द॒ऽवीः। ग॒व्युः। अर्च॑न्। सखा॑। सखी॑न्। अ॒मु॒ञ्च॒त्। निः। अ॒व॒द्यात्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर कौन सुखी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः के सुखिनो भवन्तीत्याह।
हे मनुष्याः यः पुरोभूः सतःसतः प्रतिमानं विश्वा जनिमा वेद शुष्णं हन्ति स गव्युर्नो दिवः पदवीः प्रयच्छेत्सखीनर्चन् सखा सन्नवद्यान्निरमुञ्चत्सोऽतुलं सुखमाप्नुयात् ॥८॥
MATA SAVITA JOSHI
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