Go To Mantra

अदे॑दिष्ट वृत्र॒हा गोप॑ति॒र्गा अ॒न्तः कृ॒ष्णाँ अ॑रु॒षैर्धाम॑भिर्गात्। प्र सू॒नृता॑ दि॒शमा॑न ऋ॒तेन॒ दुर॑श्च॒ विश्वा॑ अवृणो॒दप॒ स्वाः॥

English Transliteration

adediṣṭa vṛtrahā gopatir gā antaḥ kṛṣṇām̐ aruṣair dhāmabhir gāt | pra sūnṛtā diśamāna ṛtena duraś ca viśvā avṛṇod apa svāḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अदे॑दिष्ट। वृ॒त्र॒ऽहा। गोऽप॑तिः। गाः। अ॒न्तरिति॑। कृ॒ष्णान्। अ॒रु॒षैः। धाम॑ऽभिः। गा॒त्। प्र। सू॒नृताः॑। दि॒शमा॑नः। ऋ॒तेन॑। दुरः॑। च॒। विश्वाः॑। अ॒वृ॒णो॒त्। अप॑। स्वाः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:21 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:21


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब कौन गुरु होने के योग्य हें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वान् पुरुष ! जैसे (वृत्रहा) मेघ का नाशक सूर्य्य अपनी किरणों से संसार की रक्षा करता है और जैसे (गोपतिः) गौओं का पालनकर्त्ता (गाः) गौओं की रक्षा करता तथा (अरुषैः) लाल गुण विशिष्ट घोड़ों और (धामभिः) स्थान विशेषों के साथ (कृष्णान्) काले वर्णों को (अन्तः) मध्य में (गात्) प्राप्त होवें (दुरः, च) और द्वारों को (अप, (अवृणोत्) खोलै वैसे (ऋतेन) सत्य के सदृश जल के सहित (विश्वाः) सम्पूर्ण (स्वाः) अपनी (सूनृताः) सत्य आदि लक्षणों से युक्त वाणियों के (प्र, दिशमानः) अच्छे प्रकार उपदेशक (अदेदिष्ट) आप अत्यन्त उपदेश कीजिये ॥२१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग सूर्य्य गौओं के पालक और पिता के सदृश सबकी रक्षा करते हैं, वे ही गुरुजन होने योग्य हैं ॥२१॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ के गुरवो भवितुमर्हन्तीत्याह।

Anvay:

हे विद्वन् यथा वृत्रहा सूर्य्यः किरणैर्जगत्पाति यथा गोपतिर्गा रक्षत्यरुषैर्धामभिः सह कृष्णानन्तर्गाद्दुरश्चाऽपावृणोत् तथर्त्तेन सहिता विश्वाः स्वाः सूनृता वाचः प्रदिशमानोऽदेदिष्ट ॥२१॥

Word-Meaning: - (अदेदिष्ट) भृशमुपदिशत (वृत्रहा) मेघहा सूर्य्य इव (गोपतिः) गवां पालकाः (गाः) धेनूः (अन्तः) मध्ये (कृष्णान्) कृष्णवर्णान् (अरुषैः) रक्तगुणविशिष्टैरश्वैः। अरुष इत्यश्वना०। निघं० १। १४। (धामभिः) स्थानविशेषैः (गात्) प्राप्नुयात् (प्र) (सूनृताः) सत्यादिलक्षणान्विता वाचः (दिशमानः) उपदिशन्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (ऋतेन) सत्येनेव जलेन (दुरः) द्वाराणि (च) (विश्वाः) समग्राः (अवृणोत्) वृणुयात् (अप) दूरीकरणे (स्वाः) स्वकीयाः ॥२१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपामलङ्कारः। ये सूर्य्यवद्गोपतिवत्पितृवत्सर्वान् रक्षन्ति त एव गुरवो भवितुमर्हन्ति ॥२१॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक सूर्य, गोपालक व पित्याप्रमाणे सर्वांचे रक्षण करतात तेच गुरुजन होण्यायोग्य आहेत. ॥ २१ ॥