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मिहः॑ पाव॒काः प्रत॑ता अभूवन्त्स्व॒स्ति नः॑ पिपृहि पा॒रमा॑साम्। इन्द्र॒ त्वं र॑थि॒रः पा॑हि नो रि॒षो म॒क्षूम॑क्षू कृणुहि गो॒जितो॑ नः॥

English Transliteration

mihaḥ pāvakāḥ pratatā abhūvan svasti naḥ pipṛhi pāram āsām | indra tvaṁ rathiraḥ pāhi no riṣo makṣū-makṣū kṛṇuhi gojito naḥ ||

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Pad Path

मिहः॑। पा॒व॒काः। प्रऽत॑ताः। अ॒भू॒व॒न्। स्व॒स्ति। नः॒। पि॒पृ॒हि॒। पा॒रम्। आ॒सा॒म्। इन्द्र॑। त्वम्। र॒थि॒रः। पा॒हि॒। नः॒। रि॒षः। म॒क्षुऽम॑क्षु। कृ॒णु॒हि॒। गो॒ऽजितः॑। नः॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:20 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:20


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सूर्य्य के सदृश तेजस्वी राजन् ! (रथिरः) रथ आदि वस्तुओं से युक्त (त्वम्) आप (नः) हम लोगों की (रिषः) हिंसाकारक जन से (पाहि) रक्षा कीजिये (नः) हम लोगों को (गोजितः) पृथिवी के जीतनेवाले (मक्षूमक्षू) शीघ्र-शीघ्र (कृणुहि) करिये (आसाम्) इन शत्रुओं की सेनाओं के (पारम्) पार पहुँचाइये जो (मिहः) सींचनेवाले (प्रतताः) विस्तारस्वरूप और गुणों से युक्त (पावकाः) पवित्र और दूसरों को पवित्र करनेवाले (अभूवन्) होते हैं उन लोगों से (नः) हम लोगों के (स्वस्ति) सुख को (पिपृहि) पूरा कीजिये ॥२०॥
Connotation: - प्रजा और सेना के पुरुषों को चाहिये कि अपने प्रधान पुरुषों से इस प्रकार की याचना करें कि आप लोग हम लोगों से शत्रुओं को जीत-जीत कर सुख उत्पन्न करो। जैसे बिजुली आदि पदार्थ वृष्टि के द्वारा क्षुधा आदि दोष से दूर करके आनन्द देते हैं, वैसे ही हिंसा करनेवाले प्राणियों से शीघ्र दूर कर और रक्षा करके निरन्तर आनन्द दीजिये ॥२०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र रथिरस्त्वं नो रिषः पाहि नोऽस्मान्गोजितो मक्षूमक्षू कृणुहि। आसां शत्रुसेनानां पारं नय या मिहः प्रतताः पावका अभूवन् तैर्नः स्वस्ति पिपृहि ॥२०॥

Word-Meaning: - (मिहः) सेचकाः (पावकाः) पवित्राः पवित्रकराः (प्रतताः) विस्तीर्णाः स्वरूपगुणाः (अभूवन्) भवन्ति (स्वस्ति) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (पिपृहि) पूर्णं कुरु (पारम्) (आसाम्) (इन्द्र) सूर्य्य इव राजन् (त्वम्) (रथिरः) रथादियुक्तः (पाहि) (नः) अस्मान् (रिषः) हिंसकात् (मक्षूमक्षू) शीघ्रम् शीघ्रम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। मक्ष्विति क्षिप्रना०। निघं० २। १५। (कृणुहि) (गोजितः) गौर्भूमिर्जिता यैस्तान् (नः) अस्माकम् ॥२०॥
Connotation: - प्रजासेनापुरुषैः स्वेऽध्यक्षा एवं याचनीया यूयमस्माभिः शत्रून् विजयित्वा सुखं जनयत यथा विद्युदादयो वृष्टिद्वारा क्षुधादिदोषात्पृथक्कृत्यानन्दयन्ति तथैव हिंसकेभ्यः प्राणिभ्यः सद्यः पृथक्कृत्य रक्षित्वा सततमानन्दयत ॥२०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - प्रजा व सेनेच्या पुरुषांनी आपल्या मुख्य पुरुषाला अशी याचना करावी की, तुम्ही शत्रूंना जिंकून सुख उत्पन्न करा. जसे विद्युत इत्यादी पदार्थ वृष्टीद्वारे क्षुधा इत्यादी दोष दूर करून आनंद देतात, तसेच हिंसक प्राण्यांपासून शीघ्र दूर करून रक्षण करून निरंतर आनंद द्या. ॥ २० ॥