मह्या ते॑ स॒ख्यं व॑श्मि श॒क्तीरा वृ॑त्र॒घ्ने नि॒युतो॑ यन्ति पू॒र्वीः। महि॑ स्तो॒त्रमव॒ आग॑न्म सू॒रेर॒स्माकं॒ सु म॑घवन्बोधि गो॒पाः॥
mahy ā te sakhyaṁ vaśmi śaktīr ā vṛtraghne niyuto yanti pūrvīḥ | mahi stotram ava āganma sūrer asmākaṁ su maghavan bodhi gopāḥ ||
महि॑। आ। ते॒। स॒ख्यम्। व॒श्मि॒। श॒क्तीः। आ। वृ॒त्र॒ऽघ्ने। नि॒ऽयुतः॑। य॒न्ति॒। पू॒र्वीः। महि॑। स्तो॒त्रम्। अवः॑। आ। अ॒ग॒न्म॒। सू॒रेः। अ॒स्माक॑म्। सु। म॒घ॒व॒न्। बो॒धि॒। गो॒पाः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मघवन्नहं ते महि सख्यमावश्मि विद्वांसो यस्मै वृत्रघ्न इव वर्त्तमानाय तुभ्यं पूर्वीर्नियुतः शक्तीरायन्ति तस्यास्माकं मध्ये वर्त्तमानस्य सूरेस्तव सकाशान्महि स्तोत्रमवो वयमागन्म त्वमस्माकं गोपाः सन्सुबोधि ॥१४॥
MATA SAVITA JOSHI
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