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म॒ही यदि॑ धि॒षणा॑ शि॒श्नथे॒ धात्स॑द्यो॒वृधं॑ वि॒भ्वं१॒॑ रोद॑स्योः। गिरो॒ यस्मि॑न्ननव॒द्याः स॑मी॒चीर्विश्वा॒ इन्द्रा॑य॒ तवि॑षी॒रनु॑त्ताः॥

English Transliteration

mahī yadi dhiṣaṇā śiśnathe dhāt sadyovṛdhaṁ vibhvaṁ rodasyoḥ | giro yasminn anavadyāḥ samīcīr viśvā indrāya taviṣīr anuttāḥ ||

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Pad Path

म॒ही। यदि॑। धि॒षणा॑। शि॒श्नथे॑। धात्। स॒द्यः॒ऽवृध॑म्। वि॒ऽभ्व॑म्। रोद॑स्योः। गिरः॑। यस्मि॑न्। अ॒न॒व॒द्याः। स॒म्ऽई॒चीः। विश्वाः॑। इन्द्रा॑य। तवि॑षीः। अनु॑त्ताः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:31» Mantra:13 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् जनो ! आप लोगों से (यदि) जो (मही) अत्यन्त सत्कार करने योग्य (धिषणा) प्रगल्भ अर्थात् नहीं रुकनेवाली वाणी (रोदस्योः) अन्तरिक्ष और पृथिवी के मध्य में (सद्योवृधम्) शीघ्र वृद्धिकारक (विभ्वम्) व्यापक को (धात्) धारण करती है तो इस अविद्या का (शिश्नथे) नाश करती है (यस्मिन्) जिसमें (अनवद्याः) निन्दारहित (समीचीः) सत्य को धारण करनेवाली (तविषीः) बलयुक्त (अनुत्ताः) अनुकूलता से धारण की गई (विश्वाः) सम्पूर्ण (गिरः) वाणियाँ (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य के लिये समर्थ होवें वह व्यवहार सदा सेवन करने योग्य है ॥१३॥
Connotation: - जो विद्वान् लोग अनेक प्रकार की विद्याओं से युक्त वाणियों को धारण करके व्यापक परमात्मा के जानने की इच्छा करें, वे बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होवें ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वांसो भवद्भिर्यदि मही धिषणावाग्रोदस्योर्मध्ये सद्योवृधं विभ्वं धात्तर्हीयमविद्यां शिश्नथे सा सङ्ग्राह्या यस्मिन्ननवद्याः समीचीस्तविषीरनुत्ता विश्वा गिर इन्द्राय प्रभवेयुस्स व्यवहारः सदा सेवनीयः ॥१३॥

Word-Meaning: - (मही) अतीव सत्कर्त्तव्या (यदि) (धिषणा) प्रगल्भा वाक् (शिश्नथे) श्नथति हिनस्ति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (धात्) दधाति (सद्योवृधम्) यः सद्यो वर्धयति तम् (विभ्वम्) व्यापकम् (रोदस्योः) द्यावापृथिव्योः (गिरः) वाण्यः (यस्मिन्) (अनवद्याः) अनिन्द्याः (समीचीः) याः समानं सत्यमञ्चन्ति ताः (विश्वाः) अखिलाः (इन्द्राय) परमैश्वर्य्याय (तविषीः) बलयुक्ताः (अनुत्ताः) आनुकूल्येन धृताः ॥१३॥
Connotation: - ये विद्वांसो विविधविद्यायुक्ता वाचो धृत्वा विभुं परमात्मानं ज्ञातुमिच्छेयुस्ते परमैश्वर्य्यं लभेरन् ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान लोक अनेक प्रकारच्या विद्यांनी युक्त वाणींना धारण करून व्यापक परमात्म्याला जाणण्याची इच्छा करतात, त्यांना महान ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ १३ ॥