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आ नो॑ भर॒ भग॑मिन्द्र द्यु॒मन्तं॒ नि ते॑ दे॒ष्णस्य॑ धीमहि प्ररे॒के। ऊ॒र्वइ॑व पप्रथे॒ कामो॑ अ॒स्मे तमा पृ॑ण वसुपते॒ वसू॑नाम्॥

English Transliteration

ā no bhara bhagam indra dyumantaṁ ni te deṣṇasya dhīmahi prareke | ūrva iva paprathe kāmo asme tam ā pṛṇa vasupate vasūnām ||

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Pad Path

आ। नः॒। भ॒र॒। भग॑म्। इ॒न्द्र॒। द्यु॒ऽमन्त॑म्। नि। ते॒। दे॒ष्णस्य॑। धी॒म॒हि॒। प्र॒ऽरे॒के। ऊ॒र्वःऽइ॑व। प॒प्र॒थे॒। कामः॑। अ॒स्मे इति॑। तम्। आ। पृ॒ण॒। व॒सु॒ऽप॒ते॒। वसू॑नाम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:30» Mantra:19 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:19


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वसूनाम्) जनों के (वसुपते) धनपालक (इन्द्र) सुख के दाता ! जिस (देष्णस्य) देनेवाले (ते) आपके (प्ररेके) उत्तम शङ्कायुक्त व्यवहार में हम लोग (नि) (धीमहि) धारण करें वह आप (नः) हम लोगों के लिये (द्युमन्तम्) उत्तम प्रकाशयुक्त (भगम्) सेवन करने योग्य ऐश्वर्य्य को (आ) सब प्रकार (भर) धारण करो और जो (अस्मे) हम लोगों के लिये (कामः) इच्छा (ऊर्वइव) इन्धन युक्त अग्नि के सदृश (पप्रथे) वृद्धि को प्राप्त होवें (तम्) उसको (आ) (पृण) पूर्ण करो ॥१९॥
Connotation: - वही मनुष्य यथार्थवक्ता है, जिसका सर्वस्व दूसरे पुरुषादि के उपकार के लिये होता है, इस विषय में कोई शङ्का नहीं है ॥१९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वसूनां वसुपत इन्द्र यस्य देष्णस्य ते प्ररेके वयं निधीमहि स त्वं नो द्युमन्तं भगमाभर। योऽस्मे काम ऊर्वइव पप्रथे तमापृण ॥१९॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (भर) धर (भगम्) सेवनीयमैश्वर्य्यम् (इन्द्र) सुखप्रदातः (द्युमन्तम्) प्रशस्ता द्यौः प्रकाशो विद्यते यस्मिँस्तम् (वि) (ते) तव (देष्णस्य) दातुः (धीमहि) धरेम (प्ररेके) प्रकृष्टा रेका शङ्का यस्मिँस्तस्मिन् व्यवहारे (ऊर्वइव) प्राप्तेन्धनोऽग्निरिव (पप्रथे) प्रथताम् (कामः) इच्छा (अस्मे) अस्मभ्यम् (तम्) (आ) (पृण) पूर्णं कुरु (वसुपते) धनानां पालक (वसूनाम्) धनानाम् ॥१९॥
Connotation: - स एव मनुष्य आप्तोऽस्ति यस्य सर्वस्वं परोपकाराय भवति नात्र शङ्कास्ति ॥१९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -तोच माणूस यथार्थवक्ता (विद्वान) असतो, ज्याचे सर्वस्व परोपकारासाठी असते, त्याविषयी कोणतीही शंका नसते. ॥ १९ ॥