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सं घोषः॑ शृण्वेऽव॒मैर॒मित्रै॑र्ज॒ही न्ये॑ष्व॒शनिं॒ तपि॑ष्ठाम्। वृ॒श्चेम॒धस्ता॒द्वि रु॑जा॒ सह॑स्व ज॒हि रक्षो॑ मघवन्र॒न्धय॑स्व॥

English Transliteration

saṁ ghoṣaḥ śṛṇve vamair amitrair jahī ny eṣv aśaniṁ tapiṣṭhām | vṛścem adhastād vi rujā sahasva jahi rakṣo maghavan randhayasva ||

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Pad Path

सम्। घोषः॑। शृ॒ण्वे॒। अ॒व॒मैः। अ॒मित्रैः॑। ज॒हि। नि। ए॒षु॒। अ॒शनि॑म्। तपि॑ष्ठाम्। वृ॒श्च। ई॒म्। अ॒धस्ता॑त्। वि। रु॒ज॒। सह॑स्व। ज॒हि। रक्षः॑। म॒घ॒ऽव॒न्। र॒न्धय॑स्व॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:30» Mantra:16 | Ashtak:3» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:3» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) बहुत धनों से युक्त मैं (अवमैः) नीच (अमित्रैः) शत्रुओं जो (घोषः) घोर वाणी उसको (सम्) बहुत (शृण्वे) सुनता हूँ इससे उनको आप (जहि) मारिये और (एषु) इन शत्रुओं में (तपिष्ठाम्) अतिशय तपते हुए (अशनिम्) वज्र को फेंक के इनको (नि, वृश्च) उत्तम प्रकार विनाश कीजिये और इनको (अधस्तात्) नीचे गिराय के (ईम्) निरन्तर (वि) (रुज) रोगग्रस्त कीजिये और दुःख को (सहस्व) सहिये (रक्षः) दुष्ट स्वभाववाले प्राणी का (जहि) नाश कीजिये और पापी लोगों को (रन्धयस्व) ताड़िये ॥१६॥
Connotation: - हे वीर पुरुषो ! जो वाणी शत्रुओं से उच्चारण की जाय, उसको सुन उनके सन्मुख जा और उनके ऊपर शस्त्रों का प्रहार करके उन्हें छिन्न-भिन्न करो, इससे ऐश्वर्यवाले होओ ॥१६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मघवन्नहमवमैरमित्रैः यः घोषस्तं संशृण्वे ताँस्त्वं जहि। एषु तपिष्ठामशनिं प्रक्षिप्यैतान् निवृश्च। एतानधस्तात्कृत्वें विरुज दुःखं सहस्व रक्षो जहि पापिनो रन्धयस्व ॥१६॥

Word-Meaning: - (सम्) सम्यक् (घोषः) वाणीः। घोष इति वाङ्ना०। निघं० १। ११। (शृण्वे) (अवमैः) अधमैः (अमित्रैः) शत्रुभिः (जहि)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नि) (एषु) (अशनिम्) वज्रम् (तपिष्ठाम्) अतिशयेन तप्ताम् (वृश्च) छिन्धि (ईम्) सततम् (अधस्तात्) अधो निपात्य (वि) (रुज) रुग्णान् कुरु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सहस्व) (जहि) (रक्षः) दुष्टस्वभावं प्राणिनम् (मघवन्) बहुधनयुक्त (रन्धयस्व) ताडयस्व ॥१६॥
Connotation: - हे वीरा या वाणी शत्रुभिः क्रियेत तां श्रुत्वाऽभीत्यैतेषामुपरि शस्त्राणि प्रक्षिप्य विच्छिन्नान् कुरुत अनेनैश्वर्यवन्तो भवत ॥१६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे वीर पुरुषांनो! जी (दुष्ट) वाणी शत्रू उच्चारतात ती ऐकून त्यांच्यावर शस्त्रांचा प्रहार करून त्यांचा नाश करा व ऐश्वर्यवान व्हा. ॥ १६ ॥