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यदी॒ मन्थ॑न्ति बा॒हुभि॒र्वि रो॑च॒तेऽश्वो॒ न वा॒ज्य॑रु॒षो वने॒ष्वा। चि॒त्रो न याम॑न्न॒श्विनो॒रनि॑वृतः॒ परि॑ वृण॒क्त्यश्म॑न॒स्तृणा॒ दह॑न्॥

English Transliteration

yadī manthanti bāhubhir vi rocate śvo na vājy aruṣo vaneṣv ā | citro na yāmann aśvinor anivṛtaḥ pari vṛṇakty aśmanas tṛṇā dahan ||

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Pad Path

यदि॑। मन्थ॑न्ति। बा॒हुऽभिः॑। वि। रो॒च॒ते॒। अश्वः॑। न। वा॒जी। अ॒रु॒षः। वने॑षु। आ। चि॒त्रः। न। याम॑न्। अ॒श्विनोः॑। अनि॑ऽवृतः। परि॑। वृ॒ण॒क्ति॒। अश्म॑नः। तृणा॑। दह॑न्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:29» Mantra:6 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:33» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो मनुष्य (बाहुभिः) बाहुओं से (यदि) यदि अग्नि को (मन्थन्ति) मन्थते हैं तो वह (वनेषु) किरणों में (अरुषः) मर्मस्थलों में वर्त्तमान (वाजी) वेगयुक्त (अश्वः) उत्तम घोड़े के (न) सदृश (वि) (आ, रोचते) विशेषभाव से प्रकाशित होता है (अश्विनोः) सूर्य्य चन्द्रमा के मध्य में (अनिवृतः) निरन्तर प्राप्त (यामन्) रात्रि में (चित्रः) अद्भुत के (न) तुल्य (तृणा) घास विशेषों को (दहन्) भस्म करता हुआ (अश्मनः) पत्थर वा मेघ का (परि) सब प्रकार (वृणक्ति) छेदन करता है, उसको इसप्रकार सब लोग प्रकट करें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। घिसने से बलयुक्त हुआ अग्नि काष्ठ आदि को जलाता और घोड़े के तुल्य वेगवान् होता हुआ अद्भुत कार्य्यों को सिद्ध करता है, यह जानना चाहिये ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

ये मनुष्या बहुभिर्यद्यग्निं मन्थन्ति तर्हि स वनेष्वरुषो वाज्यश्वो न व्यारोचतेऽश्विनोरवृतस्सन् यामँश्चित्रो न तृणा दहन्नश्मनः परि वृणक्ति तमित्थं सर्व उद्घाटयन्तु ॥६॥

Word-Meaning: - (यदि) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मन्थन्ति) विलोडयन्ति (बाहुभिः) (वि) (रोचते) विशेषेण प्रकाशते (अश्वः) उत्तमस्तुरङ्गः (न) इव (वाजी) वेगवान् (अरुषः) मर्मसु स्थितः (वनेषु) किरणेषु (आ) (चित्रः) अद्भुतः (न) इव (यामन्) यामनि (अश्विनोः) सूर्य्याचन्द्रमसोः (अनिवृतः) निरन्तरः (परि) सर्वतः (वृणक्ति) छिनत्ति (अश्मनः) पाषाणस्य मेघस्य वा (तृणा) तृणानि घासविशेषान् (दहन्) भस्मीकुर्वन् ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। घर्षणेन जातबलोऽग्निः काष्ठादीनि दहन्नश्ववद्वेगवान् भवन्नद्भुतानि कार्य्याणि साध्नोतीति वेद्यम् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. घर्षणाने बलवान झालेला अग्नी काष्ठ इत्यादींना जाळतो व घोड्याप्रमाणे वेगवान बनून अद्भुत कार्य सिद्ध करतो, हे जाणले पाहिजे. ॥ ६ ॥