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यद॒द्य त्वा॑ प्रय॒ति य॒ज्ञे अ॒स्मिन्होत॑श्चिकि॒त्वोऽवृ॑णीमही॒ह। ध्रु॒वम॑या ध्रु॒वमु॒ताश॑मिष्ठाः प्रजा॒नन्वि॒द्वाँ उप॑ याहि॒ सोम॑म्॥

English Transliteration

yad adya tvā prayati yajñe asmin hotaś cikitvo vṛṇīmahīha | dhruvam ayā dhruvam utāśamiṣṭhāḥ prajānan vidvām̐ upa yāhi somam ||

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Pad Path

यत्। अ॒द्य। त्वा॒। प्र॒ऽय॒ति। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन्। होत॒रिति॑। चि॒कि॒त्वः॒। अवृ॑णीमहि। इह॒। ध्रु॒वम्। अ॒याः॒। ध्रु॒वम्। उ॒त। अ॒श॒मि॒ष्ठाः॒। प्र॒ऽजा॒नन्। वि॒द्वान्। उप॑। या॒हि॒। सोम॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:29» Mantra:16 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:34» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब किन पुरुषों को निश्चल ऐश्वर्य प्राप्त होता, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (चिकित्वः) विज्ञानयुक्त (होतः) साधन जो मुख्य कारण उपसाधन अर्थात् सहायि कारणों के ग्रहणकर्त्ता ! (यत्) जो हम लोग (अद्य) इस समय (अस्मिन्) इस (प्रयति) प्रयत्न से सिद्ध और (यज्ञे) ऐकमत्य होने योग्य व्यवहार में जिन (त्वा) आपको (अवृणीमहि) स्वीकार करें वह आप (इह) इस संसार में (ध्रुवम्) दृढ़ स्थिर (अशमिष्ठाः) शान्ति करो (उत) और भी (प्रजानन्) विज्ञानयुक्त हुए (ध्रुवम्) निश्चल धर्म को (अयाः) सङ्गत कीजिये (विद्वान्) विद्वान् पुरुष आप (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (उप) (याहि) प्राप्त होइये ॥१६॥
Connotation: - जो लोग इस संसार में प्रयत्न से सृष्टि के पदार्थों के विद्याक्रम को जानते हैं, वे निरन्तर उन पदार्थों से उपकार ग्रहण कर सकते हैं, उनके निश्चय से ऐश्वर्य होता है ॥१६॥ इस सूक्त में अग्नि वायु और विद्वान् के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त में कहे अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनतीसवाँ सूक्त द्वितीय अनुवाक और चौतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ केषां निश्चलमैश्वर्ये जायत इत्याह।

Anvay:

हे चिकित्वो होतो यद्ये वयमद्यास्मिन्प्रयति यज्ञे यं त्वाऽवृणीमहि स त्वमिह ध्रुवमशमिष्ठा उताऽपि प्रजानन् ध्रुवमयाः विद्वाँत्संस्त्वं सोममुपयाहि ॥१६॥

Word-Meaning: - (यत्) ये (अद्य) इदानीम् (त्वा) त्वाम् (प्रयति) प्रयत्नसाध्ये (यज्ञे) सङ्गन्तव्ये व्यवहारे (अस्मिन्) (होतः) साधनोपसाधनानामादातः (चिकित्वः) विज्ञानवन् (अवृणीमहि) वृणुयाम (इह) अस्मिन्संसारे (ध्रुवम्) निश्चलम् (अयाः) यजेः। अत्र लङ्मध्यमैकवचने शपो लुक् श्वेतवाहादित्वात्पदान्ते डस्। (ध्रुवम्) (उत) अपि (अशमिष्ठाः) शमयेः (प्रजानन्) विद्वान् (उप) (याहि) प्राप्नुहि (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् ॥१६॥
Connotation: - येऽस्मिन्संसारे प्रयत्नेन सृष्टिपदार्थविद्याक्रमं जानन्ति ते सततमुपयोगं ग्रहीतुं शक्नुवन्ति तेषां ध्रुवमैश्वर्यं भवतीति ॥१६॥ अत्राग्निवायुविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयाष्टके प्रथमोऽध्यायश्चतुस्त्रिंशत्तमो वर्गश्च तृतीयमण्डले द्वितीयोऽनुवाक एकोनत्रिंशत्तमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक या जगात प्रयत्नाने सृष्टीतील पदार्थांचा विद्याक्रम जाणतात ते सतत त्या पदार्थांचा उपयोग करून घेऊ शकतात. त्यामुळे त्यांना ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ १६ ॥