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पृ॒थु॒पाजा॒ अम॑र्त्यो घृ॒तनि॑र्णि॒क्स्वा॑हुतः। अ॒ग्निर्य॒ज्ञस्य॑ हव्य॒वाट्॥

English Transliteration

pṛthupājā amartyo ghṛtanirṇik svāhutaḥ | agnir yajñasya havyavāṭ ||

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Pad Path

पृ॒थु॒ऽपाजाः॑। अम॑र्त्यः। घृ॒तऽनि॑र्निक्। सुऽआ॑हुतः। अ॒ग्निः। य॒ज्ञस्य॑। ह॒व्य॒ऽवाट्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:27» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वान् लोग अग्नि के तुल्य कार्यसाधक होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आप लोग जो (पृथुपाजाः) विस्तारसहित बलयुक्त (अमर्त्यः) अपने स्वरूप से नाशरहित (यज्ञस्य) राज्यपालन आदि व्यवहार के (हव्यवाट्) प्राप्त होने योग्य वस्तुओं को धारण करनेवाले (घृतनिर्णिक्) जल और घी के शोधनेवाले (अग्निः) अग्नि के सदृश (स्वाहुतः) अच्छे प्रकार आदरपूर्वक पुकारे गये उस विद्वान् पुरुष की निरन्तर सेवा करो ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे साधन और उपसाधनों से उपकार में लाया गया अग्नि कार्य्यों को सिद्ध करता है, वैसे ही सेवा से संतुष्टता को प्राप्त किये विद्वान् लोग विद्या आदि की सिद्धि को सम्पादन करते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्वांसोऽग्निवत्कार्याणि साध्नुवन्तीत्याह।

Anvay:

हे मनुष्या यूयं यः पृथुपाजा अमर्त्यो यज्ञस्य हव्यवाड् घृतनिर्णिगग्निरिव स्वाहुतो भवेत्तं विद्वांसं सततं सेवध्वम् ॥५॥

Word-Meaning: - (पृथुपाजाः) पृथु विस्तीर्णं पाजो बलं यस्य सः (अमर्त्यः) स्वस्वरूपेण नित्यः (घृतनिर्णिक्) आज्योदकयोः शोधकः (स्वाहुतः) सुष्ठुमानेन कृताऽऽह्वानः (अग्निः) वह्निरिव (यज्ञस्य) राजपालनादिव्यवहारस्य (हव्यवाट्) यो हव्यानि प्राप्तव्यानि वस्तूनि वहति प्रापयति सः ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा साधनोपसाधनैरुपचरितोऽग्निः कार्य्याणि साध्नोति तथैव सेवया सन्तोषिता विद्वांसो विद्यादिसिद्धिं सम्पादयन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे साधन व उपसाधनांनी उपकारात आणलेला अग्नी कार्य सिद्ध करतो, तसे सेवेने संतुष्ट झालेले विद्वान विद्या इत्यादी प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥