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ईळे॑ अ॒ग्निं वि॑प॒श्चितं॑ गि॒रा य॒ज्ञस्य॒ साध॑नम्। श्रु॒ष्टी॒वानं॑ धि॒तावा॑नम्॥

English Transliteration

īḻe agniṁ vipaścitaṁ girā yajñasya sādhanam | śruṣṭīvānaṁ dhitāvānam ||

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Pad Path

ईळे॑। अ॒ग्निम्। वि॒पः॒ऽचित॑म्। गि॒रा। य॒ज्ञस्य॑। साध॑नम्। श्रु॒ष्टी॒ऽवान॑म्। धि॒तऽवा॑नम्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:27» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि से क्या सिद्ध होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (गिरा) वाणी से (यज्ञस्य) अहिंसारूप यज्ञ की (साधनम्) सिद्धि करने (श्रुष्टीवानम्) शीघ्र चलने वा चलानेवाले (धितावानम्) पदार्थों के धारणकर्त्ता (अग्निम्) अग्नि के सदृश तेजस्वी (विपश्चितम्) पण्डित विद्वान् की (ईळे) स्तुति करता हूँ, वैसे आप लोग भी स्तुति करें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे किसी पदार्थ के जोड़ने आदि व्यवहार की सिद्धि के लिये अग्नि मुख्योपकारी है, वैसे ही धर्म, अर्थ, काम और विद्या की प्राप्ति के लिये विद्वान् जन मुख्य हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निना किं सिध्यतीत्याह।

Anvay:

हे मनुष्या यथाऽहं गिरा यज्ञस्य साधनं श्रुष्टीवानं धितावानमग्निमिव विपश्चितमीळे तथा भवन्तः स्तुवन्तु ॥२॥

Word-Meaning: - (ईळे) स्तौमि (अग्निम्) पावकमिव वर्त्तमानम् (विपश्चितम्) पण्डितम् (गिरा) वाण्या (यज्ञस्य) (साधनम्) सिद्धिकरम् (श्रुष्टीवानम्) आशुगन्तारं गमयितारं वा (धितावानम्) पदार्थानां धारकम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सङ्गतस्य व्यवहारस्य सिद्धयेऽग्निर्मुख्योऽस्ति तथैव धर्मार्थकामविद्याप्राप्तये विद्वान् प्रधानोऽस्तीति मन्तव्यम् ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे एखाद्या पदार्थाला संयुक्त करण्याच्या व्यवहारात अग्नी मुख्य आहे तसेच धर्म, अर्थ, काम व विद्या प्राप्तीसाठी विद्वान लोक मुख्य आहेत, हे जाणावे. ॥ २ ॥