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प्र य॑न्तु॒ वाजा॒स्तवि॑षीभिर॒ग्नयः॑ शु॒भे संमि॑श्लाः॒ पृष॑तीरयुक्षत। बृ॒ह॒दुक्षो॑ म॒रुतो॑ वि॒श्ववे॑दसः॒ प्र वे॑पयन्ति॒ पर्व॑ताँ॒ अदा॑भ्याः॥

English Transliteration

pra yantu vājās taviṣībhir agnayaḥ śubhe sammiślāḥ pṛṣatīr ayukṣata | bṛhadukṣo maruto viśvavedasaḥ pra vepayanti parvatām̐ adābhyāḥ ||

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Pad Path

प्र। य॒न्तु॒। वाजाः॑। तवि॑षीभिः। अ॒ग्नयः॑। शु॒भे। सम्ऽमि॑श्लाः। पृष॑तीः। अ॒यु॒क्ष॒त॒। बृ॒ह॒त्ऽउक्षः॑। म॒रुतः॑। वि॒श्वऽवे॑दसः। प्र। वे॒प॒य॒न्ति॒। पर्व॑तान्। अदा॑भ्याः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:26» Mantra:4 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे वीरो ! आप लोग (तविषीभिः) पराक्रम आदिकों के साथ जैसे (वाजाः) वेगवाले (अग्नयः) अग्नि (विश्ववेदसः) संपूर्ण धनों से युक्त (बृहदुक्षः) अतिशय सेचनकारक (मरुतः) वायु (शुभे) जल में (संमिश्लाः) अच्छे प्रकार मिली हुई वा सुन्दर प्रयुक्त (पृषतीः) सेचन में कारण (प्र) (यन्तु) प्राप्त होवें और (अदाभ्याः) नहीं मारने योग्य होकर (पर्वतान्) पर्वतों के सदृश ऊँचे मेघों को (प्र) (वेपयन्ति) कंपाते हैं, वैसे आप लोग भी परस्पर मित्र होकर शत्रुओं को कंपाओ और बलयुक्त सेना का सञ्चय करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जल में मिले हुए पृथिवी अग्नि वायु वर्त्तमान हैं, वैसे ही जो लोग सेना में मित्र होकर वर्त्तमान होते हैं, उनका निश्चय विजय होता है ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वीरा यूयं तविषीभिः सह यथा वाजा अग्नयः विश्ववेदसो बृहदुक्षो मरुतश्च शुभे सम्मिश्ला पृषतीः प्रयन्तु अदाभ्याः पर्वतान्प्रवेषयन्ति तथा यूयमपि सखायस्सन्तोऽरीन् कम्पयत बलसैन्यादिकमयुक्षत ॥४॥

Word-Meaning: - (प्र) (यन्तु) गच्छन्तु (वाजाः) वेगवन्तः (तविषीभिः) बलादिभिः सह (अग्नयः) पावकाः (शुभे) उदके। शुभमित्युदकना०। निघं० १। १२। (संमिश्लाः) संमिश्राः संयुक्ताः (पृषतीः) सेचननिमित्ता गतीः (अयुक्षत) संयुङ्ग्ध्वम् (बृहदुक्षः) बृहदुक्षः सेचनं येभ्यस्ते (मरुतः) वायवः (विश्वेवेदसः) यैर्विश्वं विन्दति ते (प्र) (वेपयन्ति) कंपयन्ति (पर्वतान्) शैलानिवोच्छ्रितान् मेघान् (अदाभ्याः) हिंसितुमनर्हाः ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा जले मिलिताः पृथिव्यग्निवायवो वर्त्तन्ते तथैव ये सेनायां सखायो भूत्वा वर्त्तन्ते तेषां ध्रुवो विजयो भवति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे जलात पृथ्वी, अग्नी, वायूचे मिश्रण असते तसेच जे लोक सेनेत मित्र बनून राहतात त्यांचा निश्चित विजय होतो. ॥ ४ ॥