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तं शु॒भ्रम॒ग्निमव॑से हवामहे वैश्वान॒रं मा॑त॒रिश्वा॑नमु॒क्थ्य॑म्। बृह॒स्पतिं॒ मनु॑षो दे॒वता॑तये॒ विप्रं॒ श्रोता॑र॒मति॑थिं रघु॒ष्यद॑म्॥

English Transliteration

taṁ śubhram agnim avase havāmahe vaiśvānaram mātariśvānam ukthyam | bṛhaspatim manuṣo devatātaye vipraṁ śrotāram atithiṁ raghuṣyadam ||

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Pad Path

तम्। शु॒भ्रम्। अ॒ग्निम्। अव॑से। ह॒वा॒म॒हे॒। वै॒श्वा॒न॒रम्। मा॒त॒रिश्वा॑नम्। उ॒क्थ्य॑म्। बृह॒स्पति॑म्। मनु॑षः। दे॒वऽता॑तये। विप्र॑म्। श्रोता॑रम्। अति॑थिम्। र॒घु॒ऽस्यद॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:26» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (मनुषः) मननकर्त्ता (देवतातये) उत्तम गुणों की प्राप्ति के लिये (रघुष्यदम्) शीघ्रगामी (विप्रम्) बुद्धिमान् (श्रोतारम्) वेदशास्त्र आदि सुननेवाले को (अतिथिम्) अतिथि के तुल्य जिसको (अवसे) रक्षण आदि के लिये (मातरिश्वानम्) वायु में श्वासकारी (उक्थ्यम्) प्रशंसा करने योग्य (बृहस्पतिम्) पृथिवी आदि पदार्थों के धारक (वैश्वानरम्) राजा आदि में विराजमान (शुभ्रम्) प्रकाशमान (अग्निम्) बिजुली आदि स्वरूप अग्नि का (हवामहे) स्वीकार करते हैं (तम्) उसको आप लोग भी जानो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पूर्ण विद्वान् अतिथि जन श्रोता जनों को ज्ञानयुक्त करता है, उसी प्रकार अग्नि शिल्पी जनों के लिये अत्यन्त धनों को उत्पन्न करता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या मनुषो देवतातये रघुष्यदं विप्रं श्रोतारमतिथिमिव यमवसे मातरिश्वानमुक्थ्यं बृहस्पतिं वैश्वानरं शुभ्रमग्निं हवामहे तं यूयमपि विजानीत ॥२॥

Word-Meaning: - (तम्) (शुभ्रम्) भास्वरम् (अग्निम्) विद्युदादिस्वरूपं वह्निम् (अवसे) रक्षणाद्याय (हवामहे) स्वीकुर्महे (वैश्वानरम्) विश्वेषु नायकेषु विराजमानम् (मातरिश्वानम्) यो मातरि वायौ श्वसिति तम् (उक्थ्यम्) प्रशंसितुं योग्यम् (बृहस्पतिम्) बृहतां पृथिव्यादीनां पालकम् (मनुषः) मननधर्माणः (देवतातये) दिव्यगुणप्राप्तये (विप्रम्) मेधाविनम् (श्रोतारम्) (अतिथिम्) पूजनीयमनित्यस्थितिं विद्वांसम् (रघुष्यदम्) यो रघु लघु स्यन्दति तम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पूर्णविद्योऽतिथिः श्रोतॄन् ज्ञानसम्पन्नान्करोति तथैव वह्निः शिल्पिभ्यः पुष्कलधनानि निष्पादयति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा पूर्ण विद्वान अतिथी व श्रोता यांना ज्ञानयुक्त करतो त्याचप्रकारे अग्नी शिल्पीजनांसाठी अत्यंत धन उत्पन्न करतो. ॥ २ ॥