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अग्ने॒ दा दा॒शुषे॑ र॒यिं वी॒रव॑न्तं॒ परी॑णसम्। शि॒शी॒हि नः॑ सूनु॒मतः॑॥

English Transliteration

agne dā dāśuṣe rayiṁ vīravantam parīṇasam | śiśīhi naḥ sūnumataḥ ||

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Pad Path

अग्ने॑। दाः। दा॒शुषे॑। र॒यिम्। वी॒रऽव॑न्तम्। परी॑णसम्। शि॒शी॒हि। नः॒। सू॒नु॒ऽमतः॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:24» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजयुक्त विद्वान् पुरुष ! जैसे आप (दाशुषे) सबके सुखदाता जन के लिये (परीणसम्) बहुत प्रकारयुक्त (वीरवन्तम्) बहुत वीरों से विशिष्ट (रयिम्) धन को (दाः) दीजिये और वैसे ही (सूनुमतः) पुत्रयुक्त (नः) हम लोगों को (शिशीहि) प्रबल कीजिये ॥५॥
Connotation: - जो विद्या और धन के दाता विद्वान् हों, उनके प्रति ऐसा कहना चाहिये कि आप लोग हम लोगों की सब प्रकार वृद्धि करो ॥५॥ इस सूक्त में अग्नि, राजा और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह चौबीसवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने ! यथा त्वं दाशुषे परीणसं वीरवन्तं रयिन्दास्तथैव सूनुमतो नोऽस्माञ्छिशीहि ॥५॥

Word-Meaning: - (अग्ने) (दाः) देहि (दाशुषे) सर्वेषां सुखदात्रे (रयिम्) धनम् (वीरवन्तम्) बहवो वीरा यस्मिँस्तम् (परीणसम्) बहुविधम्। परीणस इति बहुनाम। निघं० ३। १। (शिशीहि) तीक्ष्णान् सम्पादय। अत्र वाच्छन्दसीति विकरणस्य श्लुरन्येषामपि दृश्यत इति दीर्घश्च। (नः) अस्मान् (सूनुमतः) पुत्रयुक्तान् ॥५॥
Connotation: - ये विद्याधनदातारः स्युस्तान्प्रत्येवं वाच्यं भवन्तोऽस्मान्सर्वथा वर्द्धयन्त्विति ॥५॥ अत्राग्निराजविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति चतुर्विंशतितमं सूक्तं स एव वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्या व धनदाते विद्वान असतील त्यांना असे म्हणावे की तुम्ही आमची सर्व प्रकारे वाढ करा. ॥ ५ ॥