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ओजि॑ष्ठं ते मध्य॒तो मेद॒ उद्भृ॑तं॒ प्र ते॑ व॒यं द॑दामहे। श्चोत॑न्ति ते वसो स्तो॒का अधि॑ त्व॒चि प्रति॒ तान्दे॑व॒शो वि॑हि॥

English Transliteration

ojiṣṭhaṁ te madhyato meda udbhṛtam pra te vayaṁ dadāmahe | ścotanti te vaso stokā adhi tvaci prati tān devaśo vihi ||

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Pad Path

ओजि॑ष्ठम्। ते॒। म॒ध्य॒तः। मेदः॑। उत्ऽभृ॑तम्। प्र। ते॒। व॒यम्। द॒दा॒म॒हे॒। श्चोत॑न्ति। ते॒। व॒सो॒ इति॑। स्तो॒काः। अधि॑। त्व॒चि। प्रति॑। तान्। दे॒व॒ऽशः। वि॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:21» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वसो) निवास के कारण ! (ते) आपके (मध्यतः) मध्य से जो (ओजिष्ठम्) अति बलयुक्त (मेदः) प्रीति (उद्भृतम्) उत्तम प्रकार धारण की गयी उनको (ते) आपके लिये (वयम्) हम लोग (प्र, ददामहे) देते हैं जो (स्तोकाः) स्तुतिकारक (ते) आपके (अधि) उपर (त्वचि) चर्म में (श्चोतन्ति) सिञ्चन करते हैं (तान्) उन (देवशः) विद्वानों के (प्रति) समीप (विहि) प्राप्त होइये ॥५॥
Connotation: - जो पुरुष बहुत ही उत्तम वस्तु जिस पुरुष को देवे, उस पुरुष को चाहिये कि उसे देनेवाले पुरुष को वैसी ही वस्तु देवे और जो लोग विद्वानों के सत्सङ्ग से श्रेष्ठ गुणों को प्राप्त होते हैं, वे संपूर्ण जनों को कोमल स्वभावयुक्त कर सकते हैं ॥५॥ इस सूक्त में अग्नि और मनुष्यों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह इक्कीसवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वसो ! ते मध्यतो यदोजिष्ठं मेद उद्भृतं तत्ते वयं प्रददामहे ये स्तोकास्तेऽधित्वचि श्चोतन्ति तान् देवशः प्रति विहि ॥५॥

Word-Meaning: - (ओजिष्ठम्) अतिशयेन बलिष्ठम् (ते) तव (मध्यतः) (मेदः) स्नेहः (उद्भृतम्) उत्कृष्टतया धृतम् (प्र) (ते) तुभ्यम् (वयम्) (ददामहे) (श्चोतन्ति) सिञ्चन्ति (ते) तव (वसो) वासहेतो (स्तोकाः) स्तावकाः (अधि) उपरिभावे (त्वचि) (प्रति) (तान्) (देयशः) देवान् (विहि) प्राप्नुहि। अत्रान्येषामपि दृश्यत इत्याद्यचो ह्रस्वः ॥५॥
Connotation: - यो हि अतीव हृद्यं वस्तु यस्मै दद्यात्तेन तस्मै तादृशमेव देयं विदुषां सङ्गेन दिव्यान्गुणान्प्राप्नुवन्ति ते सर्वान्कोमलस्वभावान् कर्तुं शक्नुवन्तीति ॥५॥ अत्राग्निमनुष्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इत्येकाधिकविंशतितमं सूक्तमेकाधिकविंशतितमश्च वर्ग्गस्समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पुरुष ज्यांना उत्तम वस्तू देतात त्यांनीही त्यांना तशाच वस्तू द्याव्यात. जे लोक विद्वानांच्या सत्संगाने श्रेष्ठ गुण प्राप्त करतात ते संपूर्ण लोकांना कोमल स्वभावयुक्त करू शकतात. ॥ ५ ॥