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तुभ्यं॑ स्तो॒का घृ॑त॒श्चुतोऽग्ने॒ विप्रा॑य सन्त्य। ऋषिः॒ श्रेष्ठः॒ समि॑ध्यसे य॒ज्ञस्य॑ प्रावि॒ता भ॑व॥

English Transliteration

tubhyaṁ stokā ghṛtaścuto gne viprāya santya | ṛṣiḥ śreṣṭhaḥ sam idhyase yajñasya prāvitā bhava ||

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Pad Path

तुभ्य॑म्। स्तो॒काः। घृ॒त॒ऽश्चुतः॑। अग्ने॑। विप्रा॑य। स॒न्त्य॒। ऋषिः॑। श्रेष्ठः॑। सम्। इ॒ध्य॒से॒। य॒ज्ञस्य॑। प्र॒ऽअ॒वि॒ता। भ॒व॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:21» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (सन्त्य) सत्य और असत्य के विभाग करनेवालों में कुशल प्रवीण (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! जो (घृतश्चुतः) घृत से सींचे गए (स्तोकाः) स्तुतिकर्त्ता लोग (विप्राय) बुद्धिमान् (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये प्राप्त होते हैं और (श्रेष्ठः) उत्तम (ऋषिः) वेदमन्त्र और उनके अर्थ के ज्ञाता आप (समिध्यसे) प्रताप वा प्रकाशयुक्त किये जाते ऐसे आप (यज्ञस्य) संगति के योग्य व्यवहार के (प्राविता) अत्यन्त रक्षाकारक (भव) होइये ॥३॥
Connotation: - हे विद्वान् लोगो ! जो लोग आपकी स्तुति करते हैं, उन पुरुषों को आप लोग वेद के अर्थ ज्ञानवाले कीजिये, जिससे एक सम्मति से परस्पर रक्षा होवे ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

Anvay:

हे सन्त्याग्ने ! ये घृतश्चुतः स्तोका विप्राय तुभ्यं श्चोतन्ति श्रेष्ठ ऋषिस्त्वं समिध्यसे स त्वं यज्ञस्य प्राविता भव ॥३॥

Word-Meaning: - (तुभ्यम्) (स्तोकाः) स्तावकाः (घृतश्चुतः) घृतेन सिक्ताः (अग्ने) विद्वन् (विप्राय) मेधाविने (सन्त्य) सन्तिषु सत्याऽसत्यविभाजकेषु साधो (ऋषिः) मन्त्रार्थवेत्ता (श्रेष्ठः) श्रेयान् (सम्) (इध्यसे) प्रकाश्यसे (यज्ञस्य) सङ्गतस्य व्यवहारस्य (प्राविता) प्रकर्षेण रक्षकः (भव) ॥३॥
Connotation: - हे विद्वांसो ये युष्मान् स्तुवन्ति तान्यूयं वेदार्थविदः कुरुत यतः परस्परेषां रक्षणं स्यात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो! जे लोक तुमची स्तुती करतात त्यांना तुम्ही वेदज्ञ करा. ज्यामुळे परस्परांचे रक्षण व्हावे. ॥ ३ ॥