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घृ॒तव॑न्तः पावक ते स्तो॒काः श्चो॑तन्ति॒ मेद॑सः। स्वध॑र्मन्दे॒ववी॑तये॒ श्रेष्ठं॑ नो धेहि॒ वार्य॑म्॥

English Transliteration

ghṛtavantaḥ pāvaka te stokāḥ ścotanti medasaḥ | svadharman devavītaye śreṣṭhaṁ no dhehi vāryam ||

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Pad Path

घृ॒तऽव॑न्तः। पा॒व॒क॒। ते॒। स्तो॒काः। श्चो॒त॒न्ति॒। मेद॑सः। स्वऽध॑र्मन्। दे॒वऽवी॑तये। श्रेष्ठ॑म्। नः॒। धे॒हि॒। वार्य॑म्॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:21» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब धर्म्मोपदेशक किसके तुल्य रक्षा करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (पावक) अग्नि के सदृश पवित्रकर्त्ता ! जिन (ते) आपके (घृतवन्तः) उत्तम वा अधिक घृतवाले तथा जलयुक्त (मेदसः) चिकने (स्तोकाः) थोड़े पदार्थ (श्चोतन्ति) सिञ्चन करते हैं वह आप (देववीतये) विद्वानों की प्राप्ति के लिये (श्रेष्ठम्) अतिउत्तम (वार्य्यम्) स्वीकार करने योग्य धन (स्वधर्मन्) अपने वैदिक धर्म में (नः) हम लोगों के लिये (धेहि) दीजिये ॥२॥
Connotation: - जैसे अग्नि जल आदि पदार्थों को अपने कर्म से शुद्ध कर वर्षा आदि रूप से संपूर्ण पदार्थों को सींच कर सब जीवों की रक्षा करते हैं, वैसे ही विद्या और धर्म के उपदेशक लोग संपूर्ण मनुष्यों का पालन करते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ धर्मोपदेशकाः किंवत्पालयन्तीत्याह।

Anvay:

हे पावक ! यस्य ते घृतवन्तो मेदसः स्तोकाः श्चोतन्ति स त्वं देववीतये श्रेष्ठं वार्य्यं स्वधर्मन्नो धेहि ॥२॥

Word-Meaning: - (घृतवन्तः) प्रशस्तं बहु वा घृतमाज्यमुदकं वा विद्यते येषान्ते (पावक) अग्निवत्पवित्रकारक (ते) तव (स्तोकाः) अल्पाः (श्चोतन्ति) सिञ्चन्ति (मेदसः) स्निग्धाः (स्वधर्मन्) स्वस्य वैदिके धर्मणि (देववीतये) विद्वत्प्राप्तये (श्रेष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्तम् (नः) अस्मभ्यम् (धेहि) देहि (वार्य्यम्) वर्तुमर्हं धनम् ॥२॥
Connotation: - यथा पावकः स्वकर्मणा जलादिपदार्थान् शुद्धान् कृत्वा वर्षादिरूपेण सर्वान् सिक्त्वा सर्वान् जीवयति तथैव विद्याधर्म्मोपदेशकाः सर्वान् मनुष्यान्पालयन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे अग्नी, जल इत्यादी पदार्थांना आपल्या क्रियेने शुद्ध करून वृष्टीरूपाने सर्व पदार्थांना सिंचित करून सर्व जीवांचे रक्षण करतो तसेच विद्या व धर्माचे उपदेशक संपूर्ण माणसांचे पालन करतात. ॥ २ ॥