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भवा॑ नो अग्ने सु॒मना॒ उपे॑तौ॒ सखे॑व॒ सख्ये॑ पि॒तरे॑व सा॒धुः। पु॒रु॒द्रुहो॒ हि क्षि॒तयो॒ जना॑नां॒ प्रति॑ प्रती॒चीर्द॑हता॒दरा॑तीः॥

English Transliteration

bhavā no agne sumanā upetau sakheva sakhye pitareva sādhuḥ | purudruho hi kṣitayo janānām prati pratīcīr dahatād arātīḥ ||

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Pad Path

भव॑। नः॒। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽमनाः॑। उप॑ऽइतौ। सखा॑ऽइव। सख्ये॑। पि॒तराऽइव। सा॒धुः। पु॒रु॒ऽद्रुहः॑। हि। क्षि॒तयः॑। जना॑नाम्। प्रति॑। प्र॒ती॒चीः। द॒ह॒ता॒त्। अरा॑तीः॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:18» Mantra:1 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस तृतीय मण्डल में अठारहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके पहिले मन्त्र से विद्वानों को क्या करना योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) कृपारूप विद्वान् पुरुष ! आप (उपेतौ) प्राप्ति में (पितरेव) जनकों के सदृश (सख्ये) मित्र कर्म के लिये (सखेव) मित्र के तुल्य (नः) हम लोगों के लिये (सुमनाः) उत्तम मनयुक्त (भव) होइये और (साधुः) उत्तम उपदेश से कल्याणकारी होकर (जनानाम्) मनुष्यों के बीच में जो (क्षितयः) मनुष्य, (पुरुद्रुहः) बहुत लोगों से द्वेषकर्त्ता होवें उन (प्रतीचीः) प्रतिकूल वर्त्तमान (अरातीः) शत्रुओं को (प्रति) (दहतात्) भस्म करिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो आप लोगों को चाहिये कि जो विद्वान् लोग मनुष्य आदि प्राणियों में पिता और मित्र के तुल्य वर्त्तावकारी उनका सत्कार और जो द्वेषकारी उनका निरादर करके धर्मवृद्धि करें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्भिः किं विधेयमित्याह।

Anvay:

हे अग्ने ! त्वमुपेतौ पितरेव सख्ये सखेव नोऽस्मभ्यं सुमना भव साधुः सन् जनानाम्मध्ये ये क्षितयः पुरुद्रुहः स्युस्तान् प्रतीचीररातीर्हि प्रतिदहतात् ॥१॥

Word-Meaning: - (भव)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) कृपामय विद्वन् (सुमनाः) शोभनं मनो यस्य सः (उपेतौ) प्राप्तौ (सखेव) मित्रवत् (सख्ये) मित्रकर्मणे (पितरेव) जनकाविव (साधुः) (पुरुद्रुहः) ये पुरून् बहून्द्रुह्यन्ति तान् (हि) (क्षितयः) मनुष्याः (जनानाम्) मनुष्याणाम् (प्रति) (प्रतीचीः) प्रतिकूलं वर्त्तमानाः (दहतात्) भस्मीकुरु (अरातीः) शत्रून् ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या युष्माभिर्ये विद्वांसो मनुष्यादिप्राणिषु पितृवन्मित्रवद्वर्त्तेरँस्तेषां सत्कारं ये द्वेष्टारस्तेषामसत्कारं कृत्वा धर्मो वर्द्धनीयः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जे विद्वान लोक माणसांशी पिता व मित्र यांच्याप्रमाणे वर्तन करतात त्यांचा सत्कार करा व जे द्वेष करतात त्यांचा निरादर करून धर्मवृद्धी करा. ॥ १ ॥