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यस्त्वद्धोता॒ पूर्वो॑ अग्ने॒ यजी॑यान्द्वि॒ता च॒ सत्ता॑ स्व॒धया॑ च शं॒भुः। तस्यानु॒ धर्म॒ प्र य॑जा चिकि॒त्वोऽथा॑ नो धा अध्व॒रं दे॒ववी॑तौ॥

English Transliteration

yas tvad dhotā pūrvo agne yajīyān dvitā ca sattā svadhayā ca śambhuḥ | tasyānu dharma pra yajā cikitvo tha no dhā adhvaraṁ devavītau ||

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Pad Path

यः। त्वत्। होता॑। पूर्वः॑। अ॒ग्ने॒। यजी॑यान्। द्वि॒ता। च॒। सत्ता॑। स्व॒धया॑। च॒। श॒म्ऽभुः। तस्य॑। अनु॑। धर्म॑। प्र। य॒ज॒। चि॒कि॒त्वः॒। अथ॑। नः॒। धाः॒। अ॒ध्व॒रम्। दे॒वऽवी॑तौ॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:17» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! जो (त्वत्) आपके समीप से (होता) दानशील (पूर्वः) पूर्ण विद्यावान् (यजीयान्) अतिशय यज्ञकारक वा संमेलकारी (द्विता) द्वित्व स्वरूप (च) और (सत्ता) स्थित (स्वधया) अन्न से (च) भी (शम्भुः) सुखकारक होवे (तस्य) उसके (धर्म) धारण करने योग्य को (अनु) (प्र) (यज) सम्प्राप्त होइये (अथ) इसके अनन्तर हे (चिकित्वः) विज्ञानशाली ! आप (देववीतौ) विद्वानों के समूह में (नः) हम लोगों के (अध्वरम्) अहिंसा आदि गुणयुक्त व्यवहार को (धाः) धारण करिये ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् लोग आप लोगों की अपेक्षा प्राचीन तथा अन्न आदि सामग्रियों से अहिंसाख्य व्यवहार को धारण किया करें, इससे वे सर्वदा सुखभोगी हों ॥५॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति है, ऐसा जानना चाहिये ॥ यह सत्रहवाँ सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यस्त्वद्धोता पूर्वो यजीयान् द्विता च सत्ता स्वधया च शम्भुर्भवेत्तस्य धर्मानु प्रयजाथ। हे चिकित्वः संस्त्वं देववीतौ नोऽध्वरं धाः ॥५॥

Word-Meaning: - (यः) (त्वत्) तव सकाशात् (होता) दाता (पूर्वः) पूर्वविद्यः (अग्ने) विद्वन् (यजीयान्) अतिशयेन यष्टा सङ्गन्ता (द्विता) द्वयोर्भावः (च) (सत्ता) दत्तः (स्वधया) अन्नेन (च) (शम्भुः) सुखं भावुकः (तस्य) (अनु) (धर्म) धर्त्तव्यम् (प्र) (यज) सङ्गच्छस्व। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (चिकित्वः) विज्ञानयुक्त (अथ) आनन्तर्य्ये। अत्रापि निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (धाः) धेहि (अध्वरम्) अहिंसादिगुणयुक्तं व्यवहारम् (देववीतौ) देवानां वीतिर्व्याप्तिस्तस्याम् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ये विद्वांसो युष्मत्प्राचीना अन्नादिसामग्रीभिरहिंसाख्यं व्यवहारं धरेयुस्ततस्ते सर्वदा सुखमाप्नुयुरिति ॥५॥ अत्राऽग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम्॥ इति सप्तदशं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! प्राचीन विद्वान लोकांनी अन्न इत्यादी सामग्रीने अहिंसा धारण केल्यामुळे ते नेहमी सुखी असत. ॥ ५ ॥