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द्रव॑तां त उ॒षसा॑ वा॒जय॑न्ती॒ अग्ने॒ वात॑स्य प॒थ्या॑भि॒रच्छ॑। यत्सी॑म॒ञ्जन्ति॑ पू॒र्व्यं ह॒र्विर्भि॒रा ब॒न्धुरे॑व तस्थतुर्दुरो॒णे॥

English Transliteration

dravatāṁ ta uṣasā vājayantī agne vātasya pathyābhir accha | yat sīm añjanti pūrvyaṁ havirbhir ā vandhureva tasthatur duroṇe ||

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Pad Path

द्रव॑ताम्। ते॒। उ॒षसा॑। वा॒जय॑न्ती॒ इति॑। अ॒ग्ने॒। वात॑स्य। प॒थ्या॑भिः। अच्छ॑। यत्। सी॒म्। अ॒ञ्जन्ति॑। पू॒र्व्यम्। ह॒विःऽभिः॑। आ। ब॒न्धुरा॑ऽइव। त॒स्थ॒तुः॒। दु॒रो॒णे॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:14» Mantra:3 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:14» Mantra:3 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को नियम का आश्रय करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश प्रकाशयुक्त विद्वान् पुरुष ! (ते) आपके लिये जैसे (वाजयन्ती) बोध कराती हुई (उषसा) प्रातःकाल सन्ध्याकाल दोनों वेला (द्रवताम्) प्रवाह से चलें वा (वातस्य) वायु के (पथ्याभिः) मार्ग में उत्तम गमनों से (दुरोणे) गृह में (अच्छ) उत्तम प्रकार (तस्थतुः) वर्त्तमान होवें (बन्धुरेव) बन्धनों के सदृश कारीगर लोग (हविर्भिः) ग्रहण करने योग्य साधनों से (यत्) जिस (पूर्व्यम्) प्राचीन लोगों से रचे गये वाहन विशेष को (सीम्) (आ, अञ्जन्ति) सब प्रकार प्रकट करते हैं, उन दोनों सायंप्रातः वेला की आप यथायोग्य सेवा करें और उस वाहन को सिद्ध करो ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे ईश्वर से नियत की सन्ध्या और प्रातःसमय की वेला नियम से वर्त्तमान हैं और जैसे चतुर कारीगरों के बनाये गये कलायन्त्रों से युक्त वाहन नियमसहित जाते आते हैं, वैसे ही अपने आप नियमपूर्वक वर्ताव करके नियत यानों को रचके अपनी इच्छानुकूल व्यवहार को उत्तम प्रकार सिद्ध करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्नियम आश्रयितव्य इत्याह।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् ! ते यथा वाजयन्ती उषसा द्रवतां वा वातस्य पथ्याभिर्दुरोणेऽच्छ तस्थतुर्बन्धुरेव शिल्पिनो हविर्भिर्यत्पूर्व्यं यानविशेषं सीमाञ्जन्ति ते त्वं यथावत् तच्च यानं साध्नुहि ॥३॥

Word-Meaning: - (द्रवताम्) गच्छेताम् (ते) तुभ्यम् (उषसा) प्रातःसायंसन्धिवेले (वाजयन्ती) प्रज्ञापयन्त्यौ (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (वातस्य) वायोः (पथ्याभिः) पथिषु साध्वीभिर्गतिभिः (अच्छ) सम्यक् (यत्) (सीम्) सर्वतः (अञ्जन्ति) प्रकटयन्ति (पूर्व्यम्) पूर्वैर्निष्पादितं यानविशेषम् (हविर्भिः) आदातव्यैः साधनैः (आ) (बन्धुरेव) यथा बन्धुरे तथा (तस्थतुः) तिष्ठेताम् (दुरोणे) गृहे ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्या यथेश्वरनियते सायंप्रातर्वेले नियमेन वर्त्तेते यथा च सुशिल्पिभिर्निर्मितानि यन्त्रयुतानि यानानि यथानियमं गच्छन्त्यागच्छन्ति तथैव स्वयं नियमे वर्त्तित्वा नियतानि यानानि संसाध्याभीष्टं व्यवहारं सम्यक् साध्नुत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जशी ईश्वराने सायंकाळ व प्रातःकाळची वेळ नियमित केलेली असते व जसे चतुर कारागिरांनी तयार केलेल्या कलायंत्रांनी वाहने नियमपूर्वक चालतात, तसेच स्वतः नियमपूर्वक आचरण करून नियंत्रित याने तयार करून आपल्या इच्छेनुसार उत्तम व्यवहार सिद्ध करावा. ॥ ३ ॥