दी॒दि॒वांस॒मपू॑र्व्यं॒ वस्वी॑भिरस्य धी॒तिभिः॑। ऋक्वा॑णो अ॒ग्निमि॑न्धते॒ होता॑रं वि॒श्पतिं॑ वि॒शाम्॥
dīdivāṁsam apūrvyaṁ vasvībhir asya dhītibhiḥ | ṛkvāṇo agnim indhate hotāraṁ viśpatiṁ viśām ||
दी॒दि॒ऽवांस॑म्। अपू॑र्व्यम्। वस्वी॑भिः। अ॒स्य॒। धी॒तिऽभिः॑। ऋक्वा॑णः। अ॒ग्निम्। इ॒न्ध॒ते॒। होता॑रम्। वि॒श्पति॑म्। वि॒शाम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।
हे मनुष्या य ऋक्वाणो धीतिभिरिव वस्वीभिरस्य संसारस्य मध्य अग्निमिव दीदिवांसमपूर्व्यं होतारं विशां विश्पतिमिन्धते तं यूयं सदा सेवध्वम् ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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