अ॒ग्निर्धि॒या स चे॑तति के॒तुर्य॒ज्ञस्य॑ पू॒र्व्यः। अर्थं॒ ह्य॑स्य त॒रणि॑॥
agnir dhiyā sa cetati ketur yajñasya pūrvyaḥ | arthaṁ hy asya taraṇi ||
अ॒ग्निः। धि॒या। सः। चे॒त॒ति॒। के॒तुः। य॒ज्ञस्य॑। पू॒र्व्यः। अर्थ॑म्। हि। अ॒स्य॒। त॒रणि॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यों को किनका सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यैः के सेवनीया इत्याह।
यो विद्वानग्निरिव केतुस्तरणि पूर्व्यो धिया ह्यस्य यज्ञस्यार्थं चेतति तस्मात्स सेव्योऽस्ति ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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