अ॒ग्निं व॑र्धन्तु नो॒ गिरो॒ यतो॒ जाय॑त उ॒क्थ्यः॑। म॒हे वाजा॑य॒ द्रवि॑णाय दर्श॒तः॥
agniṁ vardhantu no giro yato jāyata ukthyaḥ | mahe vājāya draviṇāya darśataḥ ||
अ॒ग्निम्। व॒र्ध॒न्तु॒। नः॒। गिरः॑। यतः॑। जाय॑ते। उ॒क्थ्यः॑। म॒हे। वाजा॑य। द्रवि॑णाय। द॒र्श॒तः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे विद्वांसो भवन्तः समिद्भिरग्निमिव नो गिरो वर्द्धन्तु यतो महे वाजाय द्रविणाय दर्शत उक्थ्यो जायते ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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