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प्र होत्रे॑ पू॒र्व्यं वचो॒ऽग्नये॑ भरता बृ॒हत्। वि॒पां ज्योतीं॑षि॒ बिभ्र॑ते॒ न वे॒धसे॑॥

English Transliteration

pra hotre pūrvyaṁ vaco gnaye bharatā bṛhat | vipāṁ jyotīṁṣi bibhrate na vedhase ||

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Pad Path

प्र। होत्रे॑। पू॒र्व्यम्। वचः॑। अ॒ग्नये॑। भ॒र॒त॒। बृ॒हत्। वि॒पाम्। ज्योतीं॑षि। बिभ्र॑ते। न। वे॒धसे॑॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:10» Mantra:5 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अध्यापक और विद्वान् के कर्तव्य को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे विद्वज्जनो ! (होत्रे) ग्रहण करनेवाले (अग्नये) अग्नि के (न) समान (विपाम्) उत्तम बुद्धिवालों के (ज्योतींषि) विद्यारूप तेजों को (बिभ्रते) धारण करते हुए (वेधसे) बुद्धिमान् के लिये (बृहत्) महत् प्रयोजनवाले (पूर्व्यम्) प्राचीन विद्वानों से उपदेश किये हुए (वचः) वचन को (प्र, भरत) उपदेश कीजिये ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे यज्ञ करनेवाले यज्ञ के लिये घृत आदि पदार्थों से उत्तम प्रकार पूर्वक पकाये हुए अन्नों से अग्नि की वृद्धि करते हैं, वैसे ही अध्यापक पुरुष अङ्ग और उपाङ्गों के सहित सम्पूर्ण विद्याओं के प्रचार से विद्यार्थी और श्रोतृजनों को तृप्त करें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकविद्वत्कृत्यमाह।

Anvay:

हे विद्वांसो होत्रेऽग्नये विपां ज्योतींषि न बिभ्रते वेधसे बृहत्पूर्व्यं वचः प्रभरत ॥५॥

Word-Meaning: - (प्र) (होत्रे) आदात्रे (पूर्व्यम्) पूर्वैर्विद्वद्भिरुपदिष्टम् (वचः) वचनम् (अग्नये) पावकाय (भरत) धरत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (बृहत्) महदर्थयुक्तम् (विपाम्) मेधाविनाम्। अत्र वाच्छन्दसीति नुडभावः। (ज्योतींषि) विद्यातेजांसि (बिभ्रते) धर्त्रे (न) इव (वेधसे) मेधाविने ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा याजका यज्ञाय घृतादीन् पदार्थान् गृहीत्वा सुसंस्कृतान्नैरग्निं वर्द्धर्यन्ति तथैवाध्यापकाः साङ्गोपाङ्गाः सर्वा विद्या धृत्वा विद्यार्थिनः श्रोतॄँश्च तर्प्पयेयुः ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे याजक यज्ञासाठी घृत इत्यादी पदार्थांनी उत्तम प्रकारे पक्व अन्नाची वृद्धी करतात. तसेच अध्यापक पुरुषांनी अंग-उपांगासह संपूर्ण विद्येचा प्रचार करून विद्यार्थी व श्रोतृजनांना तृप्त करावे. ॥ ५ ॥