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जन्म॑न्जन्म॒न् निहि॑तो जा॒तवे॑दा वि॒श्वामि॑त्रेभिरिध्यते॒ अज॑स्रः। तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म॥

English Transliteration

janmañ-janman nihito jātavedā viśvāmitrebhir idhyate ajasraḥ | tasya vayaṁ sumatau yajñiyasyāpi bhadre saumanase syāma ||

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Pad Path

जन्म॑न्ऽजन्मन्। निऽहि॑तः। जा॒तऽवे॑दाः। वि॒श्वामि॑त्रेभिः। इ॒ध्य॒ते॒। अज॑स्रः। तस्य॑। व॒यम्। सु॒ऽम॒तौ। य॒ज्ञिय॑स्य। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:1» Mantra:21 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:16» Mantra:6 | Mandal:3» Anuvak:1» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे जीव ! परमेश्वर ने (जन्मन् जन्मन्) जन्म-जन्म में (निहितः) कर्म्मों के अनुसार संस्थापन किया (जातवेदाः) उत्पन्न हुए पदार्थों में न उत्पन्न हुए के समान वर्तमान (विश्वामित्रेभिः) समस्त संसार जिनका मित्र उन सज्जनों से (अजस्रः) निरन्तर (इध्यते) प्रबोधित कराया जाता (तस्य) उस (यज्ञियस्य) यज्ञ के होते हुए प्राणी की (सुमतौ) प्रशंसित प्रज्ञा में और (भद्रे) कल्याण करनेवाले व्यवहार में तथा (सौमनसे) सुन्दर मन के भाव में (अपि) भी हम लोग (स्याम) होवें ॥२१॥
Connotation: - सब मनुष्यों को प्रसिद्ध जगत् में सुख-दुःखादि न्यून अधिक फलों को देखकर पहिले जन्म में सञ्चित कर्म फल का अनुमान करना चाहिये, जो परमेश्वर कर्म फल का देनेवाला न हो तो व्यवस्था भी प्राप्त न हो, इसलिये सबको श्रेष्ठ बुद्धि उत्पन्न कर वैर आदि छोड़ सबके साथ स़त्य भाव से वर्तना चाहिये ॥२१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे जीव परमेश्वरेण जन्मन् जन्मन्निहितो जातवेदा विश्वामित्रेभिरजस्र इध्यते तस्य यज्ञियस्य सुमतौ भद्रे सौमनसे अपि वयं स्याम ॥२१॥

Word-Meaning: - (जन्मन् जन्मन्) जन्मनि जन्मनि (निहितः) कर्म्मानुसारेण स्थापितः (जातवेदाः) यो जातेषु पदार्थेष्वजातः सन् विद्यते सः (विश्वामित्रेभिः) विश्वं सर्वं जगन्मित्रं येषान्तैः (इध्यते) प्रज्ञाप्यते प्रदीप्यते वा (अजस्रः) निरन्तरः (तस्य) (वयम्) (सुमतौ) प्रशस्तप्रज्ञायाम् (यज्ञस्य) यज्ञमर्हतः (अपि) (भद्रे) कल्याणकरे (सौमनसे) शोभनस्य मनसो भावे (स्याम) भवेम ॥२१॥
Connotation: - सर्वैर्मनुष्यैः प्रसिद्धे जगति सुखदुःखादीनि न्यूनाधिकानि दृष्ट्वा प्रागर्जितकर्मफलमनुमेयम्। यदि परमेश्वरः कर्मफलप्रदाता न भवेत् तर्हीयं व्यवस्थापि न सङ्गच्छेत् तदर्थं सर्वैः श्रेष्ठां प्रतिज्ञामुत्पाद्य द्वेषादीनि विहाय सर्वैः सह सत्यभावेन वर्तितव्यम् ॥२१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जगातील सुख-दुःखाचे कमी-अधिक फल पाहून माणसांनी पूर्व जन्माच्या संचित कर्माच्या फळाचे अनुमान केले पाहिजे. जर परमेश्वर कर्मफळ देणारा नसेल तर सर्व व्यवस्था नियमित राहिली नसती. त्यासाठी सर्वांनी श्रेष्ठ बुद्धी उत्पन्न करून वैर इत्यादी सोडून सर्वांबरोबर सत्याने वागले पाहिजे. ॥ २१ ॥