बृ॒हन्त॒ इद्भा॒नवो॒ भाऋ॑जीकम॒ग्निं स॑चन्त वि॒द्युतो॒ न शु॒क्राः। गुहे॑व वृ॒द्धं सद॑सि॒ स्वे अ॒न्तर॑पा॒र ऊ॒र्वे अ॒मृतं॒ दुहा॑नाः॥
bṛhanta id bhānavo bhāṛjīkam agniṁ sacanta vidyuto na śukrāḥ | guheva vṛddhaṁ sadasi sve antar apāra ūrve amṛtaṁ duhānāḥ ||
बृ॒हन्तः॑। इत्। भा॒नवः॑। भाःऽऋ॑जीकम्। अ॒ग्निम्। स॒च॒न्त॒। वि॒ऽद्युतः॑। न। शु॒क्राः। गुहा॑ऽइव। वृ॒द्धम्। सद॑सि। स्वे। अ॒न्तः। अ॒पा॒रे। ऊ॒र्वे। अ॒मृतम्। दुहा॑नाः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्या ये बृहन्तोऽमृतन्दुहाना भानवो विद्युतो न शुक्राः सदसि वृद्धमिवात्मानं गुहेव भाऋजीकमग्निं सजन्त येऽपारे स्वे ऊर्वेऽभिव्याप्यान्तर्विराजेते तानिदेव विजानीत ॥१४॥
MATA SAVITA JOSHI
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