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सैनानी॑केन सुवि॒दत्रो॑ अ॒स्मे यष्टा॑ दे॒वाँ आय॑जिष्ठः स्व॒स्ति। अद॑ब्धो गो॒पा उ॒त नः॑ पर॒स्पा अग्ने॑ द्यु॒मदु॒त रे॒वद्दि॑दीहि॥

English Transliteration

sainānīkena suvidatro asme yaṣṭā devām̐ āyajiṣṭhaḥ svasti | adabdho gopā uta naḥ paraspā agne dyumad uta revad didīhi ||

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Pad Path

सः। ए॒ना। अनी॑केन। सु॒ऽवि॒दत्रः॑। अ॒स्मे इति॑। यष्टा॑। दे॒वान्। आऽय॑जिष्ठः। स्व॒स्ति। अद॑ब्धः। गो॒पाः। उ॒त। नः॒। प॒रः॒ऽपाः। अग्ने॑। द्यु॒ऽमत्। उ॒त। रे॒वत्। दि॒दी॒हि॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:9» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:6 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! जैसे (सः) वह देनेवाला (अस्मे) हमारे (एना) इस (अनीकेन) सेना समूह के साथ (सुविदत्रः) सुन्दर विज्ञान देने (यष्टा) और सब व्यवहारों की सङ्गति करनेवाला अच्छा ज्ञानी वा दाता (आ,यजिष्ठः) सब ओर से अतीव यज्ञकर्त्ता (अदब्धः) न नष्ट हुआ (गोपाः) गोपाल (नः) हमको (परस्पाः) दुःखों से पार करनेवाला (द्युमत्) विज्ञान प्रकाशयुक्त (उत) और (रेवत्) बहुत धन सहित (स्वस्ति) सुख को देता है (उत) और (देवान्) दिव्य गुण वा अपना विजय चाहनेवाले वीरों को सेवते हैं, वैसे आप उक्त समस्त को (दीदिहि) दीजिये ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे उत्तम सेना से युक्त राजा दुष्टों को जीत विद्वानों का सत्कार कर और प्रजा की अच्छे प्रकार रक्षा कर सबका ऐश्वर्य बढ़ाता है, वैसे सभों को होना चाहिये ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि के समान विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह नववाँ सूक्त और पहिला वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने यथा सोऽस्मे एनाऽनीकेन सुवीदत्रो यष्टा आयजिष्ठोऽदब्धो गोपा नः परस्पा द्युमदुत रेवत्स्वस्ति ददात्युत देवान् सेवते तथा त्वमेतद्दिदीहि ॥६॥

Word-Meaning: - (सः) दाता। अत्र सोऽचि लोप इति सुलोपः। (एना) एनेन (अनीकेन) सेनासमूहेन सह (सुविदत्रः) सुविज्ञानदाता (अस्मे) (अस्माकम्) (यष्टा) सङ्गन्ता सुष्ठुविज्ञाता दाता वा (देवान्) दिव्यान् गुणान् विजिगीषकान् वीरान्वा (आयजिष्ठः) समन्तादतिशयितो यष्टा (स्वस्ति) सुखम् (अदब्धः) अहिंसितः (गोपाः) गवां पाता (उत) अपि (नः) अस्माकम् (परस्पाः) पारयिता (अग्ने) विद्वन् (द्युमत्) विज्ञानप्रकाशयुक्तम् (उत) अपि (रेवत्) बहुधनसहितम् (दिदीहि) देहि ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोत्तमया सेनया युक्तो राजा दुष्टाञ्जित्वा विदुषः सत्कृत्य प्रजाः संरक्ष्य सर्वेषामैश्वर्यं वर्द्धयति तथा सर्वैर्भवितव्यमिति ॥६ अस्मिन् सूक्तेऽग्निवद्विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति नवमं सूक्त प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा उत्तम सेनेने युक्त राजा दुष्टांना जिंकून विद्वानांचा सत्कार करून प्रजेचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करतो व सर्वांचे ऐश्वर्य वाढवितो, तसे सर्वांनी वागले पाहिजे. ॥ ६ ॥