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त्वं दू॒तस्त्वमु॑ नः पर॒स्पास्त्वं वस्य॒ आ वृ॑षभ प्रणे॒ता। अग्ने॑ तो॒कस्य॑ न॒स्तने॑ त॒नूना॒मप्र॑युच्छ॒न्दीद्य॑द्बोधि गो॒पाः॥

English Transliteration

tvaṁ dūtas tvam u naḥ paraspās tvaṁ vasya ā vṛṣabha praṇetā | agne tokasya nas tane tanūnām aprayucchan dīdyad bodhi gopāḥ ||

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Pad Path

त्वम्। दू॒तः। त्वम्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। प॒रः॒ऽपाः। त्वम्। वस्यः॑। आ। वृ॒ष॒भ॒। प्र॒ऽने॒ता। अग्ने॑। तो॒कस्य॑। नः॒। तने॑। त॒नूना॑म्। अप्र॑ऽयुच्छन्। दीद्य॑त्। बो॒धि॒। गो॒पाः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:9» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वृषभ) बलवान् (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! (त्वम्) आप (नः) हमारे (दूतः) देशान्तर पहुँचानेवाले (त्वम्) आप (उ) ही (परस्पाः) सबसे पार और रक्षा करनेवाले (त्वम्) आप (वस्यः) निवास करने योग्य (तोकस्य) सन्तान को (आ,प्रणेता) सब ओर से अच्छे प्रकार समस्त गुणों को प्रवृत्त करानेहारे (नः) हम लोगों के (तनूनाम्) शरीरों के (तने) विस्तार में (अप्रयुच्छन्) न प्रमाद कराते हुए (गोपाः) शरीर की रक्षा करनेवाले (दीद्यत्) सब विषयों को प्रकाश कराते (बोधि) और जानते हो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य, अग्नि प्रयोग से प्रेरणा दी हुई नौका समुद्र से पार जैसे पहुँचाती, वैसे दुःखरूपी समुद्र से पार करते हैं, सन्तानों की शिक्षा में और शरीरों की रक्षा करने में प्रवीण और प्रमाद को छोड़ धर्म के अनुष्ठान करनेवाले हैं, वे यहाँ आभ्युदयिक सुख को प्राप्त होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे वृषभाऽग्ने त्वं नो दूतस्त्वमु परस्पास्त्वं वस्यस्तोकस्याऽप्रणेता नस्तनूनां तनेऽप्रयुच्छन् गोपा दीद्यद्बोधि ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (दूतः) देशान्तरं प्रापकः (त्वम्) (उ) (नः) (परस्पाः) पारयिता रक्षकश्च (त्वम्) (वस्यः) वसीयान् (आ) (वृषभ) बलिष्ठ (प्रणेता) प्रकृष्टतया नेता (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (तोकस्य) अपत्यस्य (नः) अस्माकम् (तने) विस्तारे (तनूनाम्) (अप्रयुच्छन्) (दीद्यत्) दीद्यत्प्रकाशयति (बोधि) बुध्यसे (गोपाः) रक्षकः ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अग्निप्रयुक्तनौका समुद्रात्पारं गमयतीव दुःखात्पारं गमयन्ति सन्तानानां शिक्षणे शरीराणां रक्षणे च प्रवीणाः प्रमादं विहाय धर्मस्याऽनुष्ठातारः सन्ति तेऽत्राभ्युदयिकं सुखं प्राप्नुवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. अग्नीद्वारे प्रयुक्त केलेली नौका समुद्रापार पोचविते तसे जी माणसे दुःखरूपी समुद्र पार करतात, संतानांना शिक्षण देऊन शरीराचे रक्षण करण्यास तत्पर असतात व प्रमाद न करता धर्माचे अनुष्ठान करतात ती येथे आभ्युदयिक सुख प्राप्त करतात. ॥ २ ॥