मा नो॒ अरा॑तिरीशत दे॒वस्य॒ मर्त्य॑स्य च। पर्षि॒ तस्या॑ उ॒त द्वि॒षः॥
mā no arātir īśata devasya martyasya ca | parṣi tasyā uta dviṣaḥ ||
मा। नः॒। अरा॑तिः। ई॒श॒त॒। दे॒वस्य॑। मर्त्य॑स्य। च॒। पर्षि॑। तस्याः॑। उ॒त। द्वि॒षः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे विद्वन्नो देवस्य मर्त्त्यस्य चारातिर्मेशत उतापि तस्या द्विषो नः पर्षि पारं नय ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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