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इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग म॒हद्भ॒यम॒भी षदप॑ चुच्यवत्। स हि स्थि॒रो विच॑र्षणिः॥

English Transliteration

indro aṅga mahad bhayam abhī ṣad apa cucyavat | sa hi sthiro vicarṣaṇiḥ ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। अ॒ङ्ग। म॒हत्। भ॒यम्। अ॒भि। सत्। अप॑। चु॒च्य॒व॒त्। सः। हि। स्थि॒रः। विऽच॑र्षणिः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:41» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य्य के विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (अङ्ग) विद्वान् पुरुष जो (स्थिरः) स्थिर अपनी परिधि में ठहरा हुआ (विचर्षणिः) देखनेवाला (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सूर्य (महत्) बहुत (सत्) होता हुआ (भयम्) जो भय उसको (अप,अभि,चुच्यवत्) अलग करता है (सः,हि) वही सूर्यलोक जानने योग्य है ॥१०॥
Connotation: - यदि ब्रह्माण्ड में सूर्य न हो तो किसी का भय न निवृत्त हो, यदि सूर्यलोक अपनी परिधि में स्थिर और दिखानेवाला न हो तो तुल्य आकर्षण और देखना न बने ॥१०॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्य्यविषयमाह।

Anvay:

हे अङ्ग यः स्थिरो विचर्षणिरिन्द्रो महत्सद्भयमपाभिचुच्यवत्स हि वेदितव्यः ॥१०॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) (अङ्ग) सम्बोधने (महत्) (भयम्) (अभि) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सत्) (अप) (चुच्यवत्) च्यावयति (सः) (हि) किल (स्थिरः) स्वपरिधिस्थः (विचर्षणिः) दर्शकः। विचर्षणिरिति पश्यतिकर्मा निघं० ३। ११ ॥१०॥
Connotation: - यदि ब्रह्माण्डे सूर्यो न स्यात्तर्हि कस्यापि भयं न निवर्त्तेत, यदि सूर्यलोकः स्वपरिधौ स्थिरो दर्शको न भवेत्तर्हि तुल्याकर्षणं दर्शनं च न भवेत् ॥१०॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जर ब्रह्मांडात सूर्य नसता तर कुणाचेही भय नष्ट झाले नसते. जर सूर्यलोक आपल्या परिधीत स्थिर राहून दृश्यमान नसेल तर तुल्य आकर्षण व दर्शन घडले नसते. ॥ १० ॥