Go To Mantra

त्वया॒ यथा॑ गृत्सम॒दासो॑ अग्ने॒ गुहा॑ व॒न्वन्त॒ उप॑राँ अ॒भि ष्युः। सु॒वीरा॑सो अभिमाति॒षाहः॒ स्मत्सू॒रिभ्यो॑ गृण॒ते तद्वयो॑ धाः॥

English Transliteration

tvayā yathā gṛtsamadāso agne guhā vanvanta uparām̐ abhi ṣyuḥ | suvīrāso abhimātiṣāhaḥ smat sūribhyo gṛṇate tad vayo dhāḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

त्वया॑। यथा॑। गृ॒त्स॒ऽम॒दासः॑। अ॒ग्ने॒। गुहा॑। व॒न्वन्तः॑। उप॑रान्। अ॒भि। स्युरिति॒ स्युः। सु॒ऽवीरा॑सः। अ॒भि॒मा॒ति॒ऽसहः॑। स्मत्। सू॒रिऽभ्यः॑। गृ॒ण॒ते। तत्। वयः॑। धाः॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:4» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:9


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! (यथा) जैसे (त्वया) आपके साथ वर्त्तमान (गृत्समदासः) और जिनका बुद्धिमानों के आनन्द के समान आनन्द है वे (गुहा) बुद्धि में (वन्वन्तः) सब प्रकार के पदार्थों का विभाग करते हुए (सुवीरासः) उत्तम वीरों से युक्त जन (सूरिभ्यः) विद्वानों से विद्याओं को प्राप्त होकर (उपरान्) मेघों को सूर्य के समान (अभिमातिसाहः) अभिमान करने और शत्रुजनों को सहनेवाले (अभिष्युः) सब ओर से हों वैसे जो (तत्) उसे (वयः) काम को (धाः) धारण करता है उसकी जो (गृणते) स्तुति करते हैं उनके साथ (स्मत्) ही हम लोग ऐसे हों ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे प्राप्त विद्वानों से विद्या और शिक्षा ग्रहण कर आनन्दित विजयमान और वीरपुरुषों से युक्त प्रशंसनीय जन होते हैं, वैसे अग्निविद्या से युक्त पुरुष अन्धकार को जैसे सूर्य वैसे दुःख का विनाश करते हैं ॥९॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥ यह दूसरे मण्डल में चौथा सूक्त और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥९॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने विद्वन् यथा त्वया सह वर्त्तमानाः गृत्समदासो गुहा वन्वन्तः सुवीरासः सूरिभ्यो विद्याः प्राप्य उपरान् सूर्य इवाभिमातिसहोऽभिष्युस्तथा यस्तद्वयोधास्तं ये गृणते तैस्सह स्मद्वयमपीदृशाः स्याम ॥९॥

Word-Meaning: - (त्वया) (यथा) येन प्रकारेण (गृत्समदासः) गृत्सानां मेधाविनां मद आनन्द इवानन्दो येषान्ते (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (गुहा) गुहायाम् (वन्वन्तः) विभजन्तः (उपरान्) मेघान् (अभि) (स्युः) भवेयुः (सुवीरासः) सुशोभमानैर्वीरैर्युक्ताः (अभिमातिसाहः) येऽभिमातिन् शत्रून् सहन्ते (स्मत्) एव (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (गृणते) स्तुवन्ति (तत्) (वयः) कामम् (धाः) दधाति ॥९॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथाऽऽप्तेभ्यो विद्वद्भ्यो विद्याशिक्षे गृहीत्वा आनन्दिता विजयमाना वीरपुरुषाढ्याः प्रशंसनीया जना जायन्ते तथाऽग्निविद्यया युक्ताः पुरुषा अन्धकारं सूर्यइव दुःखं विनाशयन्ति ॥९॥ । अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति द्वितीयमण्डले चतुर्थं सूक्तं पञ्चविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे आप्त विद्वानांकडून विद्या व शिक्षण ग्रहण करून आनंदी, विजयी वीर पुरुष प्रशंसनीय बनतात व जसा सूर्य अंधकार नष्ट करतो तसे अग्निविद्येने युक्त पुरुष दुःखाचा नाश करतात. ॥ ९ ॥