स यो व्यस्था॑द॒भि दक्ष॑दु॒र्वीं प॒शुर्नैति॑ स्व॒युरगो॑पाः। अ॒ग्निः शो॒चिष्माँ॑ अत॒सान्यु॒ष्णन्कृ॒ष्णव्य॑थिरस्वदय॒न्न भूम॑॥
sa yo vy asthād abhi dakṣad urvīm paśur naiti svayur agopāḥ | agniḥ śociṣmām̐ atasāny uṣṇan kṛṣṇavyathir asvadayan na bhūma ||
सः। यः। वि। अस्था॑त्। अ॒भि। धक्ष॑त्। उ॒र्वीं। प॒शुः। न। ए॒ति॒। स्व॒ऽयुः। अगो॑पाः। अ॒ग्निः। शो॒चिष्मा॑न्। अ॒त॒सानि॑। उ॒ष्णन्। कृ॒ष्णऽव्य॑थिः। अ॒स्व॒द॒य॒त्। न। भूम॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर अग्निपरता से ही विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनरग्निपरत्वेनैव विद्वद्विषयमाह।
हे मनुष्या यो भूम भूम्ना व्यस्थात्स्वयुरगोपाः पशुर्नेवैत्युर्वीमभि दक्षत्स शोचिष्मान् कृष्णव्यथिरग्निरतसान्युष्णन्नस्वदयद्वर्त्तते तं यथावद्विजानीत ॥७॥
MATA SAVITA JOSHI
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