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ना॒वेव॑ नः पारयतं यु॒गेव॒ नभ्ये॑व न उप॒धीव॑ प्र॒धीव॑। श्वाने॑व नो॒ अरि॑षण्या त॒नूनां॒ खृग॑लेव वि॒स्रसः॑ पातम॒स्मान्॥

English Transliteration

nāveva naḥ pārayataṁ yugeva nabhyeva na upadhīva pradhīva | śvāneva no ariṣaṇyā tanūnāṁ khṛgaleva visrasaḥ pātam asmān ||

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Pad Path

ना॒वाऽइ॑व। नः॒। पा॒र॒य॒त॒म्। यु॒गाऽइ॑व। नभ्या॑ऽइव। नः॒। उ॒प॒धी इ॒वेत्यु॑प॒धीऽइ॑व। प्र॒धी इ॒वेति॑ प्र॒धीऽइ॑व। श्वाना॑ऽइव। नः॒। अरि॑षण्या। त॒नूना॑म् खृग॑लाऽइव। वि॒ऽस्रसः॑। पा॒त॒म्। अ॒स्मान्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:39» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जो वायु और बिजली (युगेव) रथादि में अश्वादिकों के समान जोड़े हुए (नावेव) वा जैसे उत्तमता से नावें वैसे (नः) हम लोगों को (पारयतम्) पार पहुँचाते (नभ्येव) वा रथ के पहियों के बीच के अङ्ग के समान वा (उपधीव) रथ के बीच के भाग की धारण करनेवाली लकड़ी के समान वा (प्रधीव) समस्त रथ की धारण करनेवाली दो लकड़ियों के समान (नः) हम लोगों को पहुँचाते हैं वा (श्वानेव) चोरादिकों से रक्षा करनेवाले कुत्तों के समान (नः) हमारे (तनूनाम्) शरीरों को (अरिषण्या) न नष्ट करनेहारे हैं और (खृगलेव) जो खोदने को गलाते हुए के समान (विस्रसः) जीर्णावस्था से (अस्मान्) हम लोगों की (पातम्) रक्षा करते हैं, उनका हम लोगों को आप उपदेश देओ ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। कोई भी सृष्टि के पदार्थों के गुण, कर्म और स्वभावों को न जान के पूर्ण विद्यावाला नहीं होता है, इससे सृष्टि की विद्याओं का अच्छे प्रकार प्रचार करना चाहिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वांसो यौ वायुविद्युतौ युगेव नावेव नः पारयतं नम्येवोपधीव प्रधीव नः पारयतं श्वानेव नस्तनूनामरिषण्या स्तः खृगलेव विस्रसोऽस्मान् पातं तावस्मानुपदिशत ॥४॥

Word-Meaning: - (नावेव) यथोत्तमे नावौ (नः) अस्मान् (पारयतम्) पारयतः (युगेव) अश्वादिवत्संयोजितौ (नम्येव) यथा रथचक्रमध्यप्रदेशाऽवयवौ (नः) अस्मान् (उपधीव) यथोपाधिर्मध्यस्थस्य रथावयवस्य धारिका (प्रधीव) यथा सर्वस्य धर्त्री रथावयवा (श्वानेव) यथा चोरादिभ्यो रक्षकौ कुक्कुरौ (नः) अस्माकम् (अरिषण्या) अहिंसकौ (तनूनाम्) शरीराणाम् (खृगलेव) यौ खृ खननं गलयतस्तौ (विस्रसः) जीर्णावस्थायाः (पातम्) रक्षतः (अस्मान्) ॥४॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। नहि कश्चिदपि सृष्टिपदार्थानां गुणकर्मस्वभावान् विदित्वा पूर्णविद्यो जायते तस्मात्सृष्टिविद्याः संचारणीयाः ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. कोणीही सृष्टीच्या पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव न जाणता पूर्ण विद्यावान होत नाही त्यामुळे सृष्टी विद्येचा चांगल्या प्रकारे प्रचार केला पाहिजे. ॥ ४ ॥