पुनः॒ सम॑व्य॒द्वित॑तं॒ वय॑न्ती म॒ध्या कर्तो॒र्न्य॑धा॒च्छक्म॒ धीरः॑। उत्सं॒हाया॑स्था॒द्व्यृ१॒॑तूँर॑दर्धर॒रम॑तिः सवि॒ता दे॒व आगा॑त्॥
punaḥ sam avyad vitataṁ vayantī madhyā kartor ny adhāc chakma dhīraḥ | ut saṁhāyāsthād vy ṛtūm̐r adardhar aramatiḥ savitā deva āgāt ||
पुन॒रिति॑। सम्। अ॒व्य॒त्। विऽत॑तम्। वय॑न्ती। म॒ध्या। कर्तोः॑। नि। अ॒धा॒त्। शक्म॑। धीरः॑। उत्। स॒म्ऽहाय॑। अ॒स्था॒त्। वि। ऋ॒तून्। अ॒द॒र्धः॒। अ॒रम॑तिः। स॒वि॒ता। दे॒वः। आ। अ॒गा॒त्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब सूर्यलोक विषय को अगल मन्त्र में कहा है।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ सूर्यलोकविषयमाह।
यो धीरो विद्वान् या मध्या वयन्ती पृथिवी विततं समव्यत्कर्त्तोः शक्म न्यधात् पूर्वं देशं संहायोत्तरं प्राप्नुवत्युदस्थात् तां जानाति योऽरमतिः सविता देव तून् व्यदर्धः सन्निहितान् पदार्थानागात्तां जानाति स भूगोलखगोलविद्भवति ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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