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पुनः॒ सम॑व्य॒द्वित॑तं॒ वय॑न्ती म॒ध्या कर्तो॒र्न्य॑धा॒च्छक्म॒ धीरः॑। उत्सं॒हाया॑स्था॒द्व्यृ१॒॑तूँर॑दर्धर॒रम॑तिः सवि॒ता दे॒व आगा॑त्॥

English Transliteration

punaḥ sam avyad vitataṁ vayantī madhyā kartor ny adhāc chakma dhīraḥ | ut saṁhāyāsthād vy ṛtūm̐r adardhar aramatiḥ savitā deva āgāt ||

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Pad Path

पुन॒रिति॑। सम्। अ॒व्य॒त्। विऽत॑तम्। वय॑न्ती। म॒ध्या। कर्तोः॑। नि। अ॒धा॒त्। शक्म॑। धीरः॑। उत्। स॒म्ऽहाय॑। अ॒स्था॒त्। वि। ऋ॒तून्। अ॒द॒र्धः॒। अ॒रम॑तिः। स॒वि॒ता। दे॒वः। आ। अ॒गा॒त्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:38» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्यलोक विषय को अगल मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (धीरः) धीर बुद्धिमान् (मध्या) आकाश के बीच (वयन्ती) चलती हुई पृथिवी (विततम्) जो पदार्थ अपने में व्याप्त उसको (सम्,अव्यत्) सम्यक् व्याप्त होती (कर्त्तोः) और करने योग्य जाने-आने के काम को तथा (शक्म) शक्ति के अनुकूल जो कर्म है उसको (नि,अधात्) निरन्तर धारण करती है (पुनः) फिर पूर्व देश को (संहाय) अच्छे प्रकार छोड़ उत्तर अर्थात् दूसरे देश को प्राप्त होती हुई (उत्,अस्थात्) स्थित होती उसको जानता है, जो (अरमतिः) बिना रमण विद्यमान है वह (सविता) सूर्य्यलोक (देवः) प्रकाशमान होता हुआ (तून्) तुओं को (व्यदर्धः) निरन्तर अलग करता तथा निकट के पदार्थों को (आ,अगात्) प्राप्त होता उसको जो जानता है, वह भूगोल और खगोल विद्या का जाननेवाला होता है ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! ये सब लोक अन्तरिक्ष में ठहरे हुए भ्रमणशील ईश्वर ने नियम को पहुँचाये हुए हैं, उनमें सूर्य के सन्निकट और भ्रमण से छः तु होते हैं, यह जानना चाहिये ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यलोकविषयमाह।

Anvay:

यो धीरो विद्वान् या मध्या वयन्ती पृथिवी विततं समव्यत्कर्त्तोः शक्म न्यधात् पूर्वं देशं संहायोत्तरं प्राप्नुवत्युदस्थात् तां जानाति योऽरमतिः सविता देव तून् व्यदर्धः सन्निहितान् पदार्थानागात्तां जानाति स भूगोलखगोलविद्भवति ॥४॥

Word-Meaning: - (पुनः) (सम्) (अव्यत्) व्याप्नोति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (विततम्) व्याप्तम् (वयन्ती) गच्छन्ती (मध्या) आकाशस्य मध्ये भवा (कर्त्तोः) कर्त्तव्यं गमनाद्यगन्तव्यं कर्म (नि) (अधात्) दधाति (शक्म) शक्यं कर्म (धीरः) धीमान् (उत्) (संहाय) सम्यक् त्यक्त्वा (अस्थात्) तिष्ठति (वि) (तून्) वसन्तादीन् (अदर्धः) भृशं विदारयति। अत्र वर्णव्यत्ययेन दस्य स्थाने धः (अरमतिः) न रमती रमणं विद्यते यस्य सः (सविता) सूर्यलोकः (देवः) प्रकाशमानः (आ) (अगात्) आगच्छति ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या इमे सर्वे लोका अन्तरिक्षस्था भ्रमणशीला ईश्वरेण नियमं प्रापिताः सन्ति तेषु सूर्यसन्निध्या भ्रमणेन च षडृतवो जायन्त इति वेद्यम् ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! हे सर्व गोल अंतरिक्षात भ्रमण करतात ते ईश्वराने नियमपूर्वक बनवलेले असतात. पृथ्वीचे सूर्याभोवती परिभ्रमण होत असल्यामुळे सहा ऋतू होतात हे जाणावे. ॥ ४ ॥