उदु॒ ष्य दे॒वः स॑वि॒ता स॒वाय॑ शश्वत्त॒मं तद॑पा॒ वह्नि॑रस्थात्। नू॒नं दे॒वेभ्यो॒ वि हि धाति॒ रत्न॒मथाभ॑जद्वी॒तिहो॑त्रं स्व॒स्तौ॥
ud u ṣya devaḥ savitā savāya śaśvattamaṁ tadapā vahnir asthāt | nūnaṁ devebhyo vi hi dhāti ratnam athābhajad vītihotraṁ svastau ||
उत्। ऊँ॒ इति॑। स्यः। दे॒वः। स॒वि॒ता। स॒वाय॑। श॒श्व॒त्ऽत॒मम्। तत्ऽअ॑पाः। वह्निः॑। अ॒स्था॒त्। नू॒नम्। दे॒वेभ्यः॑। वि। हि। धाति॑। रत्न॑म्। अथ॑। अ॒भ॒ज॒त्। वी॒तिऽहो॑त्रम्। स्व॒स्तौ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब अड़तीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में ईश्वर के विषय को कहते हैं।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथेश्वरविषयमाह।
यो वह्निस्तदपाः सविता देवो जगदीश्वरः सवाय शश्वत्तमं देवेभ्यो नूनमुदस्थात्। उ स्यो हि रत्नं विधाति अथ स्वस्तौ वीतिहोत्रं जगदभजत् ॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
या सूक्तात ईश्वर, सूर्य व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.