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अपा॑द्धो॒त्रादु॒त पो॒त्राद॑मत्तो॒त ने॒ष्ट्राद॑जुषत॒ प्रयो॑ हि॒तम्। तु॒रीयं॒ पात्र॒ममृ॑क्त॒मम॑र्त्यं द्रविणो॒दाः पि॑बतु द्रविणोद॒सः॥

English Transliteration

apād dhotrād uta potrād amattota neṣṭrād ajuṣata prayo hitam | turīyam pātram amṛktam amartyaṁ draviṇodāḥ pibatu drāviṇodasaḥ ||

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Pad Path

अपा॑त्। हो॒त्रात्। उ॒त। पो॒त्रात्। अ॒म॒त्त॒। उ॒त। ने॒ष्ट्रात्। अ॒जु॒ष॒त॒। प्रयः॑। हि॒तम्। तु॒रीय॑म्। पात्र॑म्। अमृ॑क्तम्। अम॑र्त्यम्। द्र॒वि॒णः॒ऽदाः॒। पि॒ब॒तु॒। द्र॒वि॒णो॒द॒सः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:37» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (द्रविणोदाः) धन देनेवाला (होत्रात्) हवन से (उत) और (पोत्रात्) पवित्र व्यवहार से (प्रयः) मनोहर अन्नादि पदार्थ (हितम्) जो कि सुख करनेवाला है उसको (अपात्) पीये (अमत्त) हर्ष को प्राप्त हो (उत) और (नेष्ट्रात्) पदार्थ प्राप्ति से (अजुषत) प्रसन्न हो वैसे (द्रविणोदसः) जो धन को भोगता उस त्विज् का मनोहर अन्नादि पदार्थ जो सुख करनेवाला (तुरीयम्) चतुर्थ (अमर्त्यम्) नष्ट होनेपन से रहित (अमृक्तम्) अकोमल (पात्रम्) जो पीने योग्य है उसको (पिबतु) पिओ ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो हवन और अपवित्र को पवित्र करनेवाली प्राप्ति से हित साध सकते हैं, वे प्रीतिमान् होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा द्रविणोदा होत्रादुत पोत्रात्प्रयो हितमपादमत्त उत नेष्ट्रादजुषत तथा द्रविणोदसः प्रयो हितं तुरीयममर्त्यममृक्तं पात्रं पिबतु ॥४॥

Word-Meaning: - (अपात्) पिबेत् (होत्रात्) हवनात् (उत) (पोत्रात्) पवित्रात् (अमत्त) हृष्यतु (उत) (नेष्ट्रात्) (अजुषत) (प्रयः) कमनीयमन्नादिकम् (हितम्) सुखकरम् (तुरीयम्) चतुर्थम् (पात्रम्) दातुं योग्यम् (अमृक्तम्) अकोमलम् (अमर्त्यम्) मरणधर्मरहितम् (द्रविणोदाः) यो द्रविणं ददाति सः (पिबतु) (द्रविणोदसः) यो द्रविणमत्ति तस्य। त्विजोऽत्र द्रविणोदस उच्यन्ते हविषो दातारस्ते चैनं जनयन्ति। निरु० ८। २ ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये हवनेन पवित्रीकरणेन प्रापणेन हितं साद्धुं शक्नुवन्ति ते प्रीतिमन्तो जायन्ते ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे हवनाद्वारे पवित्रता प्राप्त करून हित साधतात, ते प्रेमळ असतात. ॥ ४ ॥