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मेद्य॑न्तु ते॒ वह्न॑यो॒ येभि॒रीय॒सेऽरि॑षण्यन्वीळयस्वा वनस्पते। आ॒यूया॑ धृष्णो अभि॒गूर्या॒ त्वं ने॒ष्ट्रात्सोमं॑ द्रविणोदः॒ पिब॑ ऋ॒तुभिः॑॥

English Transliteration

medyantu te vahnayo yebhir īyase riṣaṇyan vīḻayasvā vanaspate | āyūyā dhṛṣṇo abhigūryā tvaṁ neṣṭrāt somaṁ draviṇodaḥ piba ṛtubhiḥ ||

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Pad Path

मेद्य॑न्तु। ते॒। वह्न॑यः। येभिः॑। ईय॑से। अरि॑षण्यन्। वी॒ळ॒य॒स्व॒। व॒न॒स्प॒ते॒। आ॒ऽयूय॑। धृ॒ष्णो॒ इति॑। अ॒भि॒ऽगूर्य॑। त्वम्। ने॒ष्ट्रात्। सोम॑म्। द्र॒वि॒णः॒ऽदः॒। पिब॑। ऋ॒तुऽभिः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:37» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (द्रविणोदः) धन के देने और (वनस्पते) किरणसमूह की रक्षा करनेवाले (धृष्णो) प्रगल्भ आप जैसे (वह्नयः) पदार्थ पहुँचानेवाले (ते) आपके (सोमम्) ओषध्यादि रस को (मेद्यन्तु) सचिक्कन अपने को चाहें वा (येभिः) जिनके साथ आप (ईयसे) प्राप्त होते हो वैसे उनके साथ (अरिषण्यन्) धन की न काङ्क्षा करते हुए (वीळयस्व) स्तुति कीजिये (अभिगूर्य) और सब ओर से उद्यम कर (आयूय) और मेलकर (नेष्ट्रात्) प्राप्ति से (त्वम्) आप (तुभिः) वसन्तादि तुओं के साथ (सोमम्) ओषध्यादि के रस को (पिब) पिओ ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। किसी को बिना उद्यम के न रहना चाहिये और तुओं के प्रति अनुकूल व्यवहार करके सुख बढ़ाना चाहिये ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे द्रविणोदो वनस्पते धृष्णो त्वं यथा वह्नयस्ते सोमं मेद्यन्तु येभिः सहेयसे तथा तैः सहाऽरिषण्यन् वीळयस्व, अभिगूर्यायूय नेष्ट्रात्त्वमृतुभिः सह सोमं पिब ॥३॥

Word-Meaning: - (मेद्यन्तु) आत्मनो मेदं स्नेहमिच्छन्तु (ते) तव (वह्नयः) वोढारः। वह्नयो वोढार इति यास्कः। निरु० ८। ३। (येभिः) यैः (ईयसे) प्राप्नोषि (अरिषण्यन्) द्रविणमनिच्छुः (वीळयस्व) स्तुहि। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (वनस्पते) वनस्य किरणसमूहस्य पालक (आयूय) संमेल्य। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (धृष्णो) प्रगल्भ (अभिगूर्य) अभित उद्यमं कृत्वा, अत्रापि पूर्ववद्दीर्घः (त्वम्) (नेष्ट्रात्) प्रापणात् (सोमम्) रसम् (द्रविणोदः) धनस्य दातः (पिब) (तुभिः) वसन्तादिभिः सह ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि केनचिदनुद्यमिना स्थातव्यमृतून् प्रत्यनुकूलं व्यवहारं कृत्वा सुखं वर्द्धनीयम् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. कुणीही उद्योगाशिवाय न राहता ऋतूनुसार व्यवहार करून सुख वाढविले पाहिजे. ॥ ३ ॥