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अ॒पां नपा॒दा ह्यस्था॑दु॒पस्थं॑ जि॒ह्माना॑मू॒र्ध्वो वि॒द्युतं॒ वसा॑नः। तस्य॒ ज्येष्ठं॑ महि॒मानं॒ वह॑न्ती॒र्हिर॑ण्यवर्णाः॒ परि॑ यन्ति य॒ह्वीः॥

English Transliteration

apāṁ napād ā hy asthād upasthaṁ jihmānām ūrdhvo vidyutaṁ vasānaḥ | tasya jyeṣṭham mahimānaṁ vahantīr hiraṇyavarṇāḥ pari yanti yahvīḥ ||

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Pad Path

अ॒पाम्। नपा॑त्। आ। हि। अस्था॑त्। उ॒पऽस्थ॑म्। जि॒ह्माना॑म्। ऊ॒र्ध्वः। वि॒द्युत॑म्। वसा॑नः। तस्य॑। ज्येष्ठ॑म्। म॒हि॒मानम्। वह॑न्तीः। हिर॑ण्यऽवर्णाः। परि॑। य॒न्ति॒। य॒ह्वीः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (जिह्मानाम्) कुटिलों के (ऊर्ध्वः) ऊपर स्थित (विद्युतम्) बिजली को (वसानः) आच्छादित करता हुआ (अपाम्,नपात्) जलों के बीच न गिरने का शीलवाला मेघ (उपस्थम्) समीपस्थ पदार्थों को प्राप्त होकर (आ,अस्थात्) स्थिर होता है (तस्य,हि) उसी की (ज्येष्ठम्) अतीव प्रशंसनीय (महिमानम्) महिमा को (वहन्तीः) प्रवाहरूप से प्राप्त करती हुईं (यह्वीः) बड़ी (हिरण्यवर्णाः) हिरण्य अर्थात् सुवर्ण के समान वर्णवाली नदियाँ (परि,यन्ति) सब ओर से जाती हैं वैसे प्रजागण राजा से वर्ताव करें ॥९॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पवन की महिमा को नदियाँ प्राप्त होती हैं, वैसे विद्वान् जन राजा के प्रति वर्त्तें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो जिह्मानामूर्ध्वो विद्युतं वसानोऽपां नपान्मेघ उपस्थमास्थात् यथा तस्य हि ज्येष्ठं महिमानं वहन्तीर्यह्वीर्हिरण्यवर्णाः परियन्ति तथा प्रजा राजानं प्रतिवर्त्तन्ताम् ॥९॥

Word-Meaning: - (अपाम्) जलानां मध्ये (नपात्) अपतनशीलः (आ) (हि) (अस्थात्) तिष्ठति (उपस्थम्) समीपस्थम् (जिह्मानाम्) कुटिलानाम् (ऊर्ध्वः) ऊर्ध्वस्थितः (विद्युतम्) स्तनयित्नुम् (वसानः) आच्छादयन् (तस्य) (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्यम् (महिमानाम्) (वहन्तीः) प्रवाहं प्रापयन्त्यः (हिरण्यवर्णाः) हिरण्यवद्वर्णो यासां ता नद्यः (परि) (यन्ति) परिगच्छन्ति (यह्वीः) महत्यः। यह्व इति महन्नाम निघं० ३। ३ ॥९॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायोर्महिमानन्नद्यः परियन्ति तथा विद्वांसो राजानं प्रति वर्त्तन्ताम् ॥ ९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा वायूच्या प्रभावामुळे नद्या प्रवाहित होतात तसे विद्वानांनी राजाबरोबर वागावे. ॥ ९ ॥