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अ॒स्मै ति॒स्रो अ॑व्य॒थ्याय॒ नारी॑र्दे॒वाय॑ दे॒वीर्दि॑धिष॒न्त्यन्न॑म्। कृता॑इ॒वोप॒ हि प्र॑स॒र्स्रे अ॒प्सु स पी॒यूषं॑ धयति पूर्व॒सूना॑म्॥

English Transliteration

asmai tisro avyathyāya nārīr devāya devīr didhiṣanty annam | kṛtā ivopa hi prasarsre apsu sa pīyūṣaṁ dhayati pūrvasūnām ||

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Pad Path

अ॒स्मै। ति॒स्रः। अ॒व्य॒थ्याय॑। नारीः॑। दे॒वाय॑। दे॒वीः। दि॒धि॒ष॒न्ति॒। अन्न॑म्। कृता॑ऽइव। उप॑। हि। प्र॒ऽस॒र्स्रे। अ॒प्ऽसु। सः। पी॒यूष॑म्। ध॒य॒ति॒। पू॒र्व॒ऽसूना॑म्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (कृता इव) निष्पन्न हुई सी (तिस्रः) तीन (देवीः) निरन्तर प्रकाशमान (नारीः) स्त्री हमलोगों के (अव्यथ्याय) व्यथन अर्थात् नष्ट करने को नहीं योग्य (देवाय) काम के लिये (अन्नम्) अन्न (दिधिषन्ति) धारण करती हैं तथा जो (अप्सु) अन्तरिक्ष प्रदेशों में जल (उप,प्रसर्स्रे) अच्छे प्रकार पास में बहते हैं उन (पूर्वसूनाम्) पहले सन्तानों को उत्पन्न करनेवालियों का (सः) वह विद्वान् सन्तान (हि) ही (पीयूषम्) अमृत के समान दुग्ध को (धयति) पीता है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। तीन प्रकार की निश्चय स्त्रियाँ होती हैं, जो समान पतियोंवाली होकर विधवा हों, तो सन्तानों की उत्पत्ति के लिये अपने समान पुरुषों से वीर्य लेकर धर्म से सन्तानों को उत्पन्न करें। जो सन्तानों की विशेष इच्छा न हो तो ब्रह्मचर्य में स्थिर हों ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या याः कृता इव तिस्रो देवीर्नारीरस्मा अव्यथ्याय देवायान्नं दिधिषन्ति अप्सूप प्रसर्स्रे तासां पूर्वसूनां स सन्तानो हि पीयूषन्धयति पिबति ॥५॥

Word-Meaning: - (अस्मै) (तिस्रः) त्रित्वसङ्ख्याकाः (अव्यथ्याय) व्यथितुमनर्हाय (नारीः) स्त्रियः (देवाय) कामाय विदुषे (देवीः) देदीप्यमानाः स्त्रियः (दिधिषन्ति) धरन्ति (अन्नम्) (कृता इव) यथा निष्पन्नाः (उप) (हि) किल (प्रसर्स्रे) प्रसर्पयन्ति (अप्सु) अन्तरिक्षप्रदेशेषु (सः) (पीयूषम्) अमृतमिव दुग्धं (धयति) पिबति (पूर्वसूनाम्) याः पूर्वमपत्यानि सूयन्ते तासाम् ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। त्रिविधा हि उत्तममध्यमकनिष्ठत्वभेदेन नार्यो भवन्ति याश्च समानपतयो भूत्वा यदि विधवाः स्युस्तर्हि सन्तानोत्पादनाय स्वसदृशेभ्यो वीर्यङ्गृहीत्वा धर्मेण सन्तानानुत्पादयन्तु यदि सन्तानेप्सवो न स्युस्तर्हि ब्रह्मचर्ये तिष्ठन्तु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. तीन प्रकारच्या स्त्रिया असतात. उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ. यापैकी ज्या विधवा असतात त्यांनी संतानांच्या उत्पत्तीसाठी आपल्यासारख्याच पुरुषाचे वीर्य घेऊन धर्माने (नियोग) संतती उत्पन्न करावी व ज्यांना संततीची विशेष इच्छा नसेल त्यांनी ब्रह्मचर्य पालन करावे. ॥ ५ ॥